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तब चील जैसे हार को उठा लेती है उसी प्रकार मैंने उस रत्नकंरडक का हरण कर लिया। तब पैर तक उतरीय वस्त्र करके मैं वहाँ से बाहर निकला। इतने में महाचतुर ऐसे ऋतुपर्ण राजा ने मुझ में अनेक चोर के लक्षण देखकर शीघ्र मुझे पहचान लिया, क्योंकि चतुर जन को कुछ भी अलक्ष्य नहीं है। पश्चात राजा की आज्ञा से तुरंत ही रक्षकपुरूषों ने मुझे बाँध लिया और मुझे वध स्थान पर ले चले। उस समय दूर से ही आपकी शरण अंगीकार करके तार स्वर में पुकार करके मुझे बध्य मेंढे की तरह आपने छुड़ा दिया। हे माता! जब आप तापसपुर में से चले गये तब विंध्याचल से लाए हुए हाथी की तरह बसंत सेठ ने भोजन भी छोड़ दिया। तब यशोभद्रसूरि और अन्य लोगों ने बहुत समझाया, तब सात दिन उपवास करके आठवें दिन उन्होंने भोजन लिया। एक बार लक्ष्मी से कुबेर जैसे ये बंसत सेठ महामूल्यवान भेंट लेकर कुबेर राजा को मिलने गये। उनकी भेंट से संतुष्ट होकर कुबेर राजा ने छत्र चंवर के चिह्नों के साथ तापसपुर का राज्य बसंत सेठ को दे दिया।
(गा. 805 से 812) उन्होंने अपना सामंत का पद देकर बसंत श्री शेखर ऐसा नाम स्थापित किया। कुबेर राजा से विदा करे हुए बसंत सेठ बंबावाद्य के नाद के साथ तापसपुर आये और उस नगर के राजा का पालन करने लगे। इस प्रकार उस चोर की हकीकत सुनकर वैदर्भी बोली- हे वत्स! तूने पूर्व में दुष्कर्म किया है, इससे अब दीक्षा लेकर संसार समुद्र से तिर जा। पिंगल ने कहा माता की आज्ञा प्रमाण है। उस समय वहाँ विचरते विचरते दो मुनि आ पहुँचे। वैदर्भी ने निर्दोष भिक्षा से उनको प्रतिलाभित किया और पूछा कि भगवान। यह पुरूष यदि योग्य हो तो प्रसन्न होकर इसे दीक्षा दो। उन्होंने कहा योग्य है। तब पिंगल ने व्रत लेने की याचना की। उसे देवग्रह में ले जाकर उसी समय दीक्षा दे दी।
(गा. 813 से 818) __ अन्यदा विदर्भ राजा ने यह समाचार सुने कि नल राजा उनके अनुज बंधु कुबेर के साथ धुत में राज्यलक्ष्मी हार गये और कुबेर ने उनको प्रवासी कर दिया। वे दमयंती को लेकर एक महाअटवी में घुसे हैं। उसके बाद वे कहाँ गये? जीवित हैं या मर गये? यह कोई भी नहीं जानता। राजा ने यह बात रानी को कही। यह सुनकर पुष्पदंती रानी ने बहुत रूदन किया। स्त्रियों को आतुरता में
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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