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राज्य मिलेगा और जलावर्त सरोवर के पास जो हाथी को जीत लेगा, वह तेरी पुत्री का पति होगा, ऐसा जान लेना । मुनि की वाणी की प्रतीती से मेरे पिता यहाँ एक नगर बसा कर रहे और हमेशा वे जलावर्त सरोवर के पास तुम्हारी शोध के लिए दो खेचरों का भेजने लगे। वहाँ तुम हाथी को जीतकर उसपर चढ बैठे।
(गा. 137 से 154)
ऐसा देख खेचर तुमको यहाँ ले आए। पश्चात मेरे पिता अशनिवेग ने मेरी तुम्हारे साथ शादी की। पूर्व में किसी समय महात्मा धरणेंद्र नागेंद्र और विद्याधरों ने ऐसा तय किया कि जो पुरूष अर्हत चैत्य के पास रहा हो जिसके साथ स्त्री हो अथवा जो साधु के समीप बैठा हो, ऐसे पुरूष को जो मारेगा वह विद्यावान होगा तो भी विद्यारहित हो जाएगा। हे स्वामिन ! इसी कारण से मैंने आपसे वियोग न हो ऐसा वरदान माँगा है जिससे एकाकी देख तुमको वह पापी अंगारक मार न डाले। इस प्रकार उसकी वाणी को स्वीकार कर अंधकवृष्णि के दसवें पुत्र वसुदेव कुमार कलाभ्यास के विनोद द्वारा उसके साथ काल निर्गमन करने लगे। एक समय वसुदेव श्यामा के साथ रात्रि में सो रहे थे कि उस समय अंगारक विद्याधर उनका हरण कर गया । वसुदेव ने जागने पर देखा कि मेरा कौन हरण कर रहा है । वहाँ तो श्यामा के मुख वाला अंगारक खड़ा रहा, खडा रहा ऐसा बोलती हुई खड्ग धारिणी श्यामा उसे दिखाई दी। अंगारक ने श्यामा के शरीर के दो भाग कर दिये। यह देख वासुदेव बहुत पीडित हुए। इतने में तो अंगारक के सामने दो श्यामा युद्ध करती दिखाई दी । तो वसुदेव ने यह मायाजाल है ऐसा निश्चय करके इंद्र जैसा वज्र द्वारा पर्वत पर प्रहार करते हैं, वैसे सृष्टि मुष्टि द्वारा अंगारक पर प्रहार किया। उस प्रहार से पीडित अंगारक ने वसुदेव को आकाश में से नीचे फेंक दिया। वे चंपानगरी के बाहर विशाल सरोवर में आकर गिरे । हंस की तरह उस सरोवर को तैर कर वसुदेव उस सरोवर के तीर पर आए हुए उपवन में स्थित श्रीवासुपूज्य प्रभु के चैत्य में गए। श्री वासुपूज्य प्रभु को वंदन करके अवशेष रात्रि वहीं पर व्यतीत की । प्रातः काल किसी ब्राहमण के साथ चंपानगरी में आए।
(गा. 155 से 165 )
उस नगरी में स्थान स्थान पर हाथ में वीणा लेकर घूमते हुए युवा वर्ग को देखकर एक ब्राह्मण को उसका कारण पूछा। तब ब्राह्मण ने कहा, इस नगर में
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व )
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