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एक बार अंधकवृष्णि राजा ने सुप्रतिष्ठ नाम के अवधि ज्ञानी मुनि को प्रणाम करके अंजलिबद्ध होकर पूछा स्वामिन्! मेरे वसुदेव नाम का दसवाँ पुत्र है वह अत्यंत रूपवान और सौभाग्यवाला है साथ ही कलावान और पराक्रमी भी है इसका क्या कारण? सुप्रतिष्ठ मुनि बोले- मगध देश में नंदीग्राम में एक गरीब ब्राहमण था। उसके सोमिला नाम की स्त्री थी। उनके नंदीषेण नाम का पुत्र हुआ। दुर्भाग्य से शिरोमणि रूपी माता-पिता बाल्यावस्था में ही चल बसे। वह मोटा पेट वाला लंबे दांत वाला विकृत नेत्र वाला और चौरस सिर वाला था। अन्य सभी अंग भी कुरूप व बेडौल थे। उसके स्वजनों ने भी उसे छोड़ दिया था। एक बार मृतप्रायः से नंदीषेण को उसके मामा ने स्वीकार किया। उसके मामा के सात पुत्रियां थी। मामा ने उससे कहा कि मैं तुझे मेरी एक कन्या दूंगा। कन्या के लोभ से वह मामा के घर का सब काम करता था। यह बात मामा की कन्याओं को विदित हुई। सबसे बडी यौवनवती कन्या ने कहा यदि पिताजी मुझे इस कुरूपी को देंगे तो मैं मृत्यु का वरण करूंगी। यह सुनकर नंदीषण को दुख हुआ। तब मामा ने कहा कि दूसरी पुत्री दूंगा तू खेद मत कर। यह सुनकर दूसरी पुत्री ने भी वैसी ही प्रतिज्ञा की। अनुक्रम से सभी पुत्रियों ने वैसी ही प्रतिज्ञा की और उसका प्रतिशोध/विरोध किया। यह सुनकर मामा ने दुखी नंदीषण को दिलासा देते हुए कहा कि मैं किसी अन्य से मांग करके तेरा किसी कन्या से विवाह करवा दूंगा। अतः हे वत्स! तू आकुल व्याकुल मत हो। परंतु नंदीषेण ने विचार किया कि जब मेरे मामा की कन्याएं भी मुझे चाहती नहीं हैं तो फिर मुझ जैसे कुरूपी को दूसरे की कन्या कैसे चाहेगी? ऐसा विचार करके वैराग्य वासित हो वह वहाँ से निकल कर रत्नपुर नगर आया। वहाँ क्रीडा करते हुए किसी स्त्री पुरूष को देखकर वह अपनी निंदा करने लगा। पश्चात् मरने की वांछा से वैराग्य युक्त हो उपवन में आया। वहाँ सुस्थित नाम के एक मुनि को देखकर उसने उनको वंदना की। ज्ञान से उसके मनोभावों को जानकर वे मुनि बोले अरे मनुष्य! तू मृत्यु का साहस मत कर क्योंकि यह सर्वअधर्म का फल है। सुख के अर्थी को तो धर्म करना चाहिए आत्मघात से कोई सुख मिलता है, दीक्षा लेकर किया हुआ धर्म ही भवभव में सुख के हेतुभूत होता है। यह प्रतिबोध प्राप्त कर, उसने तुरन्त ही मुनि श्री के पास व्रत ग्रहण किया। तत्पश्चात् कृतार्थ होकर उसने साधुओं की वैयावृत्य करने का अभिग्रह लिया।
(गा. 13 से 29)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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