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उसके ऐसे वचन से प्रीतिमती ने जिन-जिन राजाओं पर दृष्टि डाली वे तो सभी राजा कामाभिभूत होकर से रह गये। वे मोहित हो एक टक राजकन्या को देखते हुए रह गये। पश्चात् जैसे उसके पक्ष में साक्षात् सरस्वती हो वैसे वह प्रीतिमती ने मघुमत्त कोकिला जैसे स्वर से एक तर्क युक्त प्रश्न किया। जिसे सुनकर सभी की बुद्धि क्षीण हो गई हो ऐसे सर्व भूचर और खेचर का मानो गला ही रुंध गया हो इस प्रकार कोई भी उत्तर न दे सके। शर्म के मारे उनका मुख नीचे हो गया। वह राजा और राजपुत्र लज्जित होने पर परस्पर कहने लगे कि 'पूर्व में हम किसी से भी नहीं जीते गए, हमको इस स्त्री ने जीत लिया, इससे लगता है कि स्त्रीजाति का अवश्य ही वाग्देवी सरस्वती ने इसका पक्ष लिया है। उस वक्त राजा जितशत्रु सोचने लगा, 'क्या विधाता इस कन्या के निर्माण के पश्चात् खिन्न हो गया था कि जिससे इस कन्या के योग्य कोई पति की सृष्टि ही नहीं की। इतने राजा और राजपुत्रों में से मेरी पुत्री को कोई भी पसंद नहीं आया। यदि कोई हीनजाति का पति हो जाएगा तो उसकी क्या गति होगी।?' राजा के इस प्रकार की भाव भंगिमा को देखकर मंत्री बोला- हे प्रभु! खेद मत करो। अभी भी उत्कृष्ट से उत्कृष्ट पुरुष मिल जाएंगे, क्योंकि वसुंधरा बहुरत्ना है। आप अब वह घोषणा कराओ कि जो कोई भी राजा या राजपुत्र या अन्य कोई भी इस कन्या को जीत लेगा, वही इसका पति होगा। इस प्रकार का विचार जानकर राजा ने मंत्री को शाबासी दी और तत्काल ही वैसी घोषणा कराई। यह सुनकर अपराजित कुमार विचार करने लगा कि 'कभी भी स्त्री के साथ विवाद में विजय प्राप्त करने में कुछ उत्कर्ष नहीं है। परंतु उसको कोई न जीते तो उससे पुरुष जाति के पौरुषत्व का अपमान होता है। अतः उत्कर्ष हो या न हो परंतु इस स्त्री को जीत लेना ही योग्यता है।' ऐसा विचार करके अपराजित कुमार तत्काल प्रीतिमती के समीप पहुँच गया। बादलों से छिपे सूर्य की भांति वह दुर्वेष में छिपे होने पर भी पूर्वजन्म के स्नेह संबंध से प्रीतिमती के मन में प्रीति उत्पन्न हो गई। उसने अपराजित के समक्ष पूर्व प्रश्न किया, तो तत्काल अपराजित ने उसे निरुत्तर करके जीत लिया। प्रीतिमती ने तुरंत स्वयंवर माला अपराजित के कंठ में डाल दी। सर्व भूचर और खेचर राजा उस पर कोपायमान होकर कहने लगे, 'वाणी में वाचाल जैसा और आकड़े के तूल जैसा यह हल्का व्यक्ति कौन है, अरे यह कापड़ी हम जैसे राजाओं, राजकुमारों के होने पर भी राजकन्या का पाणिग्रहण करना चाहता है। सभी राजा घुड़सवार हो, गजसवार होकर
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)