Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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।' उष्णत्वका समवाय संबंध रहनेसे 'उष्णगुण उष्णत्ववान है इसकी जगह 'उष्णगुण उष्ण हैं यह व्यवहार , हो सकता है तथा उष्णगुण भी समवाय संबंधसे आग्नमें रहता है इसलिये वहांपर भी 'अग्नि उष्णवान है क है' इसकी जगह अग्नि उष्ण है यह व्यवहार हो सकता है द्रव्यगुण आदिका अभेद संबंध मानना व्यर्थ है है है ? ऐसी आशंका ठीक नहीं । जब उष्णगुण और उष्णत्व जाति तथा उष्णगुण और, अग्नि आपसमें 15 ई सर्वथा भिन्न भिन्न पदार्थ हैं तब उष्णगुणका अग्निमें ही समवाय है जलमें नहीं तथा शीतगुणका जलमें | 1 ही समवाय है, अग्निमें नहीं यह नियम कैसे बन सकेगा ? उसीप्रकार उष्णपनाका उष्णगुणके ही साथ 16 । समवाय है शीतगुण आदि अन्य गुणों के साथ नहीं यह भी नियम कैसे बनेगा ? इसलिये जब यह हूँ
नियम नहीं ही दीख पडता है कि उष्णगुणका समवाय अग्निमें ही है जल आदिमें नहीं अथवा उष्णत्व । धर्म उष्णगुणमें ही समवाय संबंधसे रहता है शीत आदि गुणोंमें नहीं तब यही मानना चाहिये कि है उष्णगुण अग्निका परिणाम ही है। यदि नैयायिक वा वैशेषिक यहां पर यह तर्क करें कि-:
उष्ण गुण अग्निमें ही है जल आदिमें नहीं यह स्वतः सिद्ध वात है। इस नियमके करने के लिए % अन्य किसी भी कारणकी आवश्यकता नहीं ? तब उष्ण गुण अग्निका परिणाम ही सिद्ध हो जाता है हूँ क्योंकि स्वभाव और परिणाममें कोई भेद नहीं इसलिये यह वात सिद्ध हो चुकी कि समवाय सम्बन्धसे है उष्ण गुण उष्ण है अथवा अग्नि उष्ण है यह व्यवहार नहीं हो सकता क्योंकि वह व्यवहार अभेद पक्ष हूँ है में ही होता है किंतु वहांपर 'उष्ण गुण उष्णत्ववान' वा 'अग्नि उष्णवान है, यही व्यवहार होगा। और है में भी यह बात है कि
समवायाभावो वृत्त्यंतराभावात ॥१६॥
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