________________ सिद्ध-सारस्वत मङ्गल आशीर्वाद लब्धप्रतिष्ठ विद्वत्प्रवर प्रतिष्ठाचार्य विमल कुमारजी एवं प्रतिष्ठाचार्य वर्धमान सौंरया जी टीकमगढ़ को आचार्य 108 पारससागर महाराज का मङ्गल आशीर्वाद। प्रसन्नता हुई कि आपके द्वारा विद्वत् प्रवर सम्मानीय प्रो. सुदर्शनलाल जैन का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। उन्हें हम अपने आशीष वचन लिख रहे हैं। "प्रो. सुदर्शनलाल का जीवन परिचय पढ़कर प्रत्येक आचार्य/मुनि./श्रावक गण आश्चर्य में हो जायेंगे, जिन्हें 10 माह की अल्पावस्था में माँ का प्रेम छिन गया हो, अनेकों संकटों से जूझते हुये जिन्होंने सर्वोच्च शिक्षा ग्रहण कर अपनेआपको सम्हाला संवारा हो और 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी' में जिन्होंने संस्कृत विभाग में 39 वर्षों तक अध्यापन कार्य किया हो एवं 44 छात्रों को पी-एच.डी. की उपाधि दिलाई हो। यह सब उनके पूर्वजन्म का तीव्र पुण्य एवं वर्तमान जीवन का कठिन परिश्रम, लगन, उत्साह का प्रतिफल है। उच्च पद के साथ-साथ उन्होंने अपने जीवन में धार्मिक चर्या का विशेष ध्यान रखा, जैनत्व के गुणों का पालन किया। ऐसे महान व्यक्तित्व का होना समाज के लिये गौरव की बात है। हम उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। शतायु हों एवं स्वस्थ रहें, अन्त में अपने जीवन को व्रती बनाकर समाधि पूर्वक जीवन समापन करें। पुनः प्रो. सुदर्शन लाल को मङ्गल आशीर्वाद। धर्मवृद्धिरस्तु, ऐश्वर्यवृद्धिरस्तु। प. पू. आचार्यश्री 108 पारस सागर जी महाराज श्री आदिनाथ मन्दिर, सोनागिर, गोवा आशीर्वाद पाटन जिला जबलपुर से आपका विशेष सम्बन्ध है। आपके बहनोई वहाँ विधान करा रहे थे जिसमें आप भी सम्मिलित हुए थे। वहीं आपकी विद्वत्ता तथा सरलता देखी। प्रसन्नता है कि आपका अभिनन्दन ग्रन्थ छप रहा है। आप जैसे योग्य सिद्धसारस्वत विद्वान् का अभिनन्दन होना भी चाहिए। पाटन में भी आपका सम्मान किया गया था। मेरा आशीर्वाद आपके साथ है। आप मिथ्यात्व कर्म को पाटकर गुणश्रेणी निर्जरा करें। प. पू. आचार्यश्री 108 श्रेयांस सागर जी महाराज