________________
षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका वर्ष का ठीक निश्चय नहीं होता । किन्तु उसमें जगतुंगदेव के राज्य का स्पष्ट उल्लेख है । राष्ट्रकूट नरेशों में जंगतुंग उपाधि अनेक राजाओं की पाई जाती है । इनमें से प्रथम जगतुंग गोविंद तृतीय थे जिनके ताम्रपट शक संवत् ७१६ से ७३५ तक के मिले हैं । इन्हीं के पुत्र अमोघवर्ष प्रथम थे जिनके राज्य में जयधवला टीका जिनसेन द्वारा समाप्त हुई। अतएव यह स्पष्ट है कि धवला की प्रशस्ति में इन्हीं गोविन्दराज जगतुंग का उल्लेख होना चाहिए।
____ अब कुछ प्रशस्ति की उन शंकास्पद गाथाओं पर विचार कीजिये । गाथा नं. ६ में 'अट्टतीसंम्हि' और 'विक्कमरायम्हि' सुस्पष्ट है । शताब्दि की सूचना के अभाव में अड़तीसवां वर्ष हम जगतुंगदेव के राज्य का ले सकते थे। किन्तु न तो उसका विक्रमराज से कुछ संबन्ध बैठता और न जगतुंग का राज्य ही ३८ वर्ष रहा । जैसा हम ऊपर बतला चुके हैं उनका राज्य केवल २० वर्ष के लगभग रहा था । अतएव इस ३८ वर्ष का संबन्ध विक्रम से ही होना चाहिये । गाथा में शतसूचक शब्द गड़बड़ी में है । किन्तु जान पड़ता है लेखक का तात्पर्य कुछ सौ ३८ वर्ष विक्रम संवत् के कहने का है । किन्तु विक्रम संवत् के अनुसार जगतुंगका राज्य ८५१ से ८७० के लगभग आता है । अत: उसके अनुसार ३८ के अंक की कुछ सार्थकता नहीं बैठती । यह भी कुछ साधारण नहीं जान पड़ता कि वीरसेन ने यहां विक्रम संवत् का उल्लेख किया हो । उन्होंने जहां जहां वीर निर्वाण की काल-गणना दी है वहां शक-काल का ही उल्लेख किया है। दक्षिण के प्राय: समस्त जैन लेखकों ने शककाल का ही उल्लेख किया है। ऐसी अवस्था में आश्चर्य नहीं जो यहां भी लेखक का अभिप्राय शक काल से हो । यदि हम उक्त संख्या ३८ के साथ सातसौ और मिला दें और ७३८ शक संवत् लें तो यह काल जगतुंग के ज्ञात काल अर्थात् शक संवत् ७३५ के बहुत समीप आ जाता है।
अब प्रश्न यह है कि जब गाथा में विक्रमराज का स्पष्ट उल्लेख है तब हम उसे शक संवत् अनुमान कैसे कर सकते हैं ? पर खोज करने से जान पड़ता है कि अनेक जैन लेखकों ने प्राचीन काल से शक काल के साथ भी विक्रम का नाम जोड़ रक्खा है । अकलंक चरित में अकलंक के बौद्धों के साथ शास्त्रार्थ का समय इस प्रकार बतलाया है।
विक्रमार्कशकाब्दीय शतसप्तप्रमाजुपि । कालेऽकलङ्कयतिनो बौद्धैर्वादो महानभूत ॥
यद्यपि इस विषय में मतभेद है कि यहां लेखक का अभिप्राय विक्रम संवत् से है या शक से, किन्तु यह तो स्पष्ट है कि विक्रम और शक का संबन्ध एक ही काल गणना से
१.रेऊ भारत के प्राचीन राजवंश. ३. पृ. ३६, ६५-६७.