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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
अब एक ऐसे बेलन की कल्पना कीजिये जिसका व्यास उस समुद्र की सीमापर्यन्त व्यास के बराबर हो जिसमें वह अन्तिम सरसों का बीज डाला हो । इस बेलन को अ, कहिये। अब इस अ. को भी पूर्वोक्त प्रकार सरसों से शिखायुक्त भर देने की कल्पना कीजिये। फिर इन बीजों को भी पूर्व प्राप्त अन्तिम समुद्रवलय से आगे के द्वीप-समुद्र रूप वलयों में पूर्वोक्त प्रकार से क्रमश: एक-एक बीज डालिये । इस द्वितीय वार विरलन में भी अन्तिम सरसप किसी समुद्रवलय पर ही पड़ेगा । अब ब, में एक और सरसप डाल दो, यह बतलाने के लिये कि उक्त प्रक्रिया द्वितीय वार हो चुकी।
कल्पना कीजिये कि यही प्रक्रिया तब तक चालू रखी गई जब तक कि ब, शिखायुक्त न भर जाय । इस प्रक्रिया में हमें उत्तरोत्तर बढ़ते हुए आकार के बेलन लेना पड़ेंगे।
अ,, अ. ... ...... अ.. ............. मान लीजिये कि ब, के शिखायुक्त भरने पर अन्तिम बेलन अ' प्राप्त हुआ।
अब अ' को प्रथम शिखायुक्त भरा गड्ढा मान कर उस जलवलय के बाद से जिसमें पिछली क्रिया के अनुसार अन्तिम बीज डाला गया था, प्रारम्भ करके प्रत्येक जल और स्थल के बलय में एक-एक बीज छोड़ने की क्रिया को आगे बढ़ाइये । तब स, में एक बीज छोड़िये। इस प्रक्रिया को तब तक चालू रखिये जब तक कि स, शिखायुक्त न भर जाय । मान लीजिये कि इस प्रक्रिया से हमें अन्तिम बेलन अ" प्राप्त हुआ । तब फिर इस अ" से वही प्रक्रिया प्रारम्भ कर दीजिये और उसे ड, के शिखायुक्त भर जाने तक चालू रखिये । मान लीजिये कि इस प्रक्रिया के अन्त में हमें अ" ' प्राप्त हुआ। अतएव जघन्यपरीतासंख्यात अ प ज का प्रमाण '' में समानेवाले सरसप बीजों की संख्या के बराबर होगा और उत्कृष्ट संख्यात = स उ = अ प ज - १.
पर्यालोचन - संख्याओं को तीन भेदों में विभक्त करने का मुख्य अभिप्राय यह प्रतीत होता है - संख्यात अर्थात् गणना कहां तक की जा सकती है यह भाषा में संख्यानामों की उपलब्धि अथवा संख्या व्यक्ति के अन्य उपायों की प्राप्ति पर अवलम्बित है। अतएव भाषा में गणना का क्षेत्र बढ़ाने के लिये भारतवर्ष में प्रधानतः दश-मान के आधार पर संख्या-नामों की एक लम्बी श्रेणी बनाई गई । हिन्दु १०७ तक की गणना को भाषा में व्यक्त कर सकनेवाले अठारह नामों से संतुष्ट हो गये । १०१७ से ऊपर की संख्याएं उन्हीं नामों की पुनरावृत्ति द्वारा व्यक्त की जा सकती थी, जैसा कि अब हम दश-दश-लाख (million million) आदि कह कर करते हैं। किन्तु इस बात का अनुभव हो गया कि यह