________________
षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
४४६ और यदि सम्यग्दृष्टि जीव है तो वह स्व के आधारसेस्व में ही अपने भोगादिक को मानता है । भोगादि रूप परिणाम स्व में हो या पर में, यह तो सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का माहात्म्य है । यहां तो केवल आत्मा में ये भोगादि भाव क्यों नही होते हैं, और यदि होते हैं तो किस कारण से होते हैं, इसी बात का विचार किया गया है और इसके उत्तरस्वरूप बतलाया है कि भोगादि भाव के न होने का मुख्य कारण अन्तराय कर्म है । भोगादिभाव पांच हैं, इसलिए अन्तराय के भी पांच ही भेद हैं।
____भावप्रकृति - प्रकृतिनिक्षेप का चौथा भेद भावप्रकृति है । भाव का अर्थ पर्याय है। इसके दो भेद हैं - आगमभावप्रकृति और नोआगमभावप्रकृति । आगमभावप्रकृति में प्रकृति विषयक स्थित-जित आदि अनेक प्रकार के शास्त्रों का जानकार और उनके वाचना, पृच्छना आदि अनेक प्रकार के उपयोग से युक्त आत्मा लिया गया है । जब तक कोई जीव प्रकृति विषय का प्रतिपादन करने वाले स्थित-जित आदि शास्त्रों को जानते हुए भी उन शास्त्रों की वाचना, पृच्छा, प्रतीच्छना और परिवर्तना आदि करता है तब तक वह आगमभावप्रकृति कहलाता है; यह उक्त कथन का तात्पर्य है । तथा नोआगमभावप्रकृति में वर्तमान पर्याययुक्त वह वस्तु ली गई है । यथा-सुर, असुर और नाग । जो अहिंसा आदि के अनुष्ठान में रत हैं वे सुर हैं, इनसे भिन्न असुर हैं। तथा जो फण से उपलक्षित हैं वे नाग हैं आदि । इसमें पर्याय की मुख्यता है।
इस प्रकार प्रकृतिनिक्षेपनामादिक के भेद से चार प्रकार का है । उनमें से यहां किसकी मुख्यता है, इस प्रश्न को ध्यान में रखकर सूत्रकार ने बतलाया है कि यहां कर्मप्रकृति की मुख्यता है । वीरसेन स्वामी ने इसकी टीका करते हुए कहा है कि सूत्रकार ने 'यहां कर्मप्रकृति की मुख्यता है' यह वचन उपसंहार को ध्यान में रखकर कहा है । वैसे यहां नोआगमद्रव्यप्रकृति और नोआगमभावप्रकृति इन दोनों की मुख्यता है । वीरसेन स्वामी के ऐसा कहने का कारण यह है कि आगे केवल कर्मप्रकृतिका ही विवेचन न होकर इन दोनों का भी विवेचन किया गया है।
यहां प्रारम्भमें १६ अनुयोगद्वारों का नामनिर्देश किया था । किन्तु प्रकृत में प्रकृतिनिक्षेप और प्रकृतिनयविभाषणता इन दो अधिकारों का ही विचार किया है, शेष का विचार नहीं किया। अतएव उनके विषय में विशेष जानकारी कराने के लिए यह कहा है'सेसं वेदणाए भंगो'। आशय यह है कि वेदनाखण्ड में जिस प्रकार वर्णन किया है तदनुसार यहां शेष अनुयोगद्वारों का वर्णन कर लेना चाहिए।