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भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान
(डॉ. हीरालाल जैन की अन्यतम कृति)
मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद द्वारा प्रकाशित इस कृति में जैन इतिहास, साहित्य, दर्शन और कला पर रोचक, महत्वपूर्ण और प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध है। इस ग्रंथ में लेखक की उदार दृष्टि, सामाजिक चेतना तथा समन्वयवादी दिशा का भरपूर दर्शन और सम्पूर्ण साक्षात होता है। लेखक की स्थापना है कि जैनधर्म अपने विचार और जीवन सम्बन्धी व्यवस्थाओं में कभी संकुचित दृष्टि का शिकार नहीं हुआ। उसकी भूमिका राष्ट्रीय दृष्टि से सदैव उदार और उदात्त रही है। प्रान्तीयता की संकुचित भावना या देशबाह्य अनुचित अनुराग के दोष से जैन मतावलम्बी सदैव मुक्त रहे हैं। उन्होंने लोकभावनाओं के सम्बन्ध में भी यही उदार नीति अपनाई है। इसीलिये अधिकांश जैन साहित्य लोकभाषा में लिखा गया है। धार्मिक लोक मान्यताओं को भी जैनधर्म ने सम्मान देकर अपनी परम्परा में आदरपूर्वक स्थान दिया है। __ जैन दर्शन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण देन स्याद्वाद है। अनेकांतवाद का संबंध मनुष्य के विचार से है और स्याद्वाद उस विचार के योग्य अहिंसक भाषा की खोज करता है। जैन परंपरा में कला की उपासना को जो स्थान दिया गया है उससे उसका विधान पक्ष स्पष्ट हो जाता है। डॉ. जैन ने इस ग्रंथ में जैन साहित्य और जैनकला का सहजता और पूर्ण स्पष्टता से बोध कराया है वह उनके पुरुष होने का जीवंत प्रमाण है। ___मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद द्वारा पुस्तक का प्रथम संस्करण १९६२ में तथा पुनर्मुद्रण १९७५ में किया गया था। मराठी और कन्नड़ भाषाओं में पुस्तक के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। अब इस कृति का अंग्रेजी अनुवाद होकर शीघ्र प्रकाशित हो रहा है।