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जीवन क्रम और रचनात्मक वर्ष १८९९ - पूर्व गोंडवाना राज्य (अब जिला- नरसिंहपुर तहसील गाडरवारा) के गांगई ग्राम के
सुप्रसिद्ध मोदी कुल के धर्मपुरुष मोदी बालचंद जैन की सहधर्मिणी झुतरोदेवी की
कोख से ५ अक्टूबर को जन्म। १९०९ - गांगई ग्राम की प्राथमिक शाला से प्रायमरी परीक्षा शतप्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण ।
इसी वर्ष गाडरवारा के मिडिल स्कूल में प्रवेश। सप्ताहांत में पितृगृह जाकर अगले ६ दिनों के लिये पूड़ी और आचार ले आते । अंतत: आश्रयस्थल राममंदिर की
पुजारिन से अन्न पकाना सीखकर शेष विद्यार्जन काल में स्वपाकी रहकर संतुष्ट । १९१३ - गाडरवारा से मिडिल परीक्षा सर्वोच्च अंकों में उत्तीर्ण कर जिला सदर मुकाम
नरसिंहपुर में हाई स्कूल में प्रवेश। अब तक के छात्र हीरालाल को हेडमास्टर महोदय द्वारा उत्कृष्ठ छात्र होने के प्रतिफल में जैन सरनेम (कुलनाम) लिखने का निर्देश दिया। इसी वर्ष जमुनिया (गोटेगांव) वासी श्री शिवप्रसाद की सुकन्या सोनाबाई, जो पतिगृह में “खिलौना" नाम से ख्यात हुई, से १४ वर्ष की अल्पायु
में पाणिग्रहण। १९१७ - मैट्रिक की परीक्षा उच्चतम श्रेणी में उत्तीर्ण कर जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज में
उच्च शिक्षार्थ प्रवेश लिया। इसी वर्ष उन्हें प्रथम कन्या की उपलब्धि हुई जो भरे यौवन में पति और दो संतानों को छोड़कर स्वर्गवासी हुई। इस कालेज के अध्ययन काल में उन्हें जो दूसरी उपलब्धि हुई वह जीवन पर्यंत सुखकारी थी। यह उपलब्धि
थी कुंजीलाल दुबे, श्री भट्ट और श्री ताराचंद श्रीवास्तव की मैत्री। १९२० - बी.ए. प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण में करने के बाद वे पहले म्योर कालेज आगरा में पढ़ने
गये। किन्तु प्राच्य विद्या और संस्कृत भाषा और साहित्य विशेषज्ञता प्राप्त करने की ललक के कारण आगरा छोड़कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन हेतु प्रवेश मिला। उनके इस अध्ययन काल की अन्य उपलब्धि थी - श्री जमनाप्रसाद
सब जज और श्री लक्ष्मीचंद से मैत्री। १९२२ - उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय संस्कृत में विशेष योग्यता से एम.ए. और पिता
की आज्ञा के परिपालन में एल.एल.बी. परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी वर्ष उन्हें एक मात्र पुत्र की प्राप्ति हुई जिसने पिता के आचार विचार को जीवन-पाथेय बनाकर