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SHRIMAHARE
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कनाड़ी लिपि में ताड़पत्र पर हस्तलिखित श्री महाधवल ग्रंथ की उपलब्ध प्राचीनतम प्रति का २७ वां पत्र जहां 'सत्तकम्मपंचिका' पूरी होती है।
जैन सिद्धांतग्रंथ के प्राचीनतम पाठ के लिये इसे प्रामाणिक आधार प्रति संख्या २ के रूप में मान्यता दी गई है।