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(५११) भक्ति-भाव से वंदना की। वहां से लौटकर ये स्वतंत्र रूप से व्यवसाय में जुट गये तथा विपुल धन अर्जित किया। अचल और अविनाशी सम्पत्ति के स्वामी बालचंद ने गांगई में जिन-मंदिर का निर्माण कराया। इससे गांगई नरेश अत्यंत प्रभावित हुये। मोदी बालचंद ने गोंडल राजा से सदा प्रतिष्ठा और अग्रज का मान पाया। प्रज्ञा पुरुष
बालचंद के छः पुत्र हुये। उनमें मझले थे हीरालाल । ये अपनी शिक्षा और अध्ययन में विशेष रुचि रखते हुये अपनी ही टेक से आगे और आगे पढ़ते गये। गांगई से प्राथमिक, गाडरवारा से मैट्रिक, जबलपुर से इन्टर, आगरा से बी.ए. और इलाहाबाद से एम. ए. करने के बाद संस्कृत में शोधवृत्ति पाकर प्राचीन साहित्य के शोध की ओर अग्रसर हुये । अमरावती के किंग एडवर्ड कॉलेज में प्रोफेसर नियुक्त होने के बाद इन्होंने प्राचीन ग्रन्थों के उद्धार का बीड़ा उठाया। पाहुड़ दोहा, सावय धम्म दोहा, करकंडचरिउ एवं णायकुमार चरिउ प्रभृत अपभ्रंश ग्रंथों के सम्पादन प्रकाशन पर विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें डी.लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। षट्खण्डागम
और उसकी धवला टीका का सम्पादन इनके अध्यवसाय की चरम उपलब्धि थी। हिन्दी अनुवाद सहित यह ग्रन्थ १६ भागों में प्रकाशित है।
__ बिहार सरकार के आग्रह पर इन्होंने वैशाली में जैन शोध संस्थान स्थापित और विकसित किया। इसी अवधि में लिखी रचना 'भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान' इतनी लोकप्रिय हुई कि उसका विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया। जबलपुर विश्वविद्यालय के विशेष अनुरोध पर आपने वैशाली से यहाँ आकर संस्कृत विभाग को पालि, प्राकृत और अपभ्रंश के उच्चस्तरीय शोध का केन्द्र बनाया। 'तत्व समुच्चय' के प्रणयन के अतिरिक्त १५० शोधपत्रों का प्रकाशन और सुगंधदशमी कथा, सुदंसण चरिउ, मयण पराजय, कहकोसु, जसहर चरिउ का सम्पादन किया तथा अनेक ग्रंथमालाओं के सम्पादन मंडल के प्रमुख सम्पादक भी रहे । डॉ. हीरालाल मोहक व्यक्तित्व और अगाध ज्ञान के धनी थे। वस्तुतः वे तत्व दर्शन की विलुप्त विपुल सामग्री को प्रकाश में लाकर सटीक विवेचना करने वाले प्रज्ञा पुरुष थे। मर्यादा पुरुष -
मोदी मचल से प्रस्फुटित वंशपरम्परा जिस मर्यादा-पुरुष में प्रफुल्लित हुई वह नाम, रूप, गुण में समत्व के धनी मोदी प्रफुल्ल हैं। धर्म की चेतना, ज्ञान और