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प्रोफेसर, प्रशासक प्राचार्य और विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर रहकर शिक्षा जगत की श्लाध्य सेवा की।
१९२४ - इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा शोध-वृत्ति प्रदान कर शोधकार्य हेतु प्रेरित किया । इन्हीं दिनों उन्होंने जस्टिस जुगमंदर जैन को गोम्मटसार के अनुवाद में सहयोग दिया । यही समय था जब वे करंजा ग्रंथ भण्डार का निरीक्षण कर अपभ्रंश भाषा में रचित ग्रंथों के चिंतन और अभिव्यक्ति सौन्दर्य से परिचित हुये और उन्होंने प्राच्य विद्या के लुप्तरत्नों के उद्वार का मौन संकल्प लिया। इसी संकल्प की परिणति देश विदेश में समाद्त प्राच्यविद्याचार्य के रूप में दिखाई देती है ।
१९२५ - इस वर्ष उन्हें इंदौर राज्य की न्यायिक सेवा, विश्वविद्यालय की उच्चतम शोधवृत्ति और म.प्र. एवं बरार शासन की महाविद्यालयीन सेवा के निमंत्रण मिले । रायबहादुर डॉ. हीरालाल के आत्मीय निर्देश को स्वीकार कर उन्होंने किंग एडवर्ड कालेज अमरावती में असि. प्रोफेसर पद का कार्यभार ग्रहण किया ।
१९२६ - कारंजा ग्रंथ भंडारों के ग्रंथों की विषयवार व्यवस्थित सूची तैयार की।
१९२७ - अमरावती के जैन और विद्वत समाज में समादृत ।
१९२८ - 'जैन शिलालेख संग्रह' पुस्तक का प्रकाशन और प्रथम कन्या का विवाह । १९३२ - 'सावयधम्म दोहा' और 'पाहुड़ दोहा' का सम्पादन और पांचवी कन्या की प्राप्ति। १९३३ - 'णायकुमारचरिउ' का सम्पादन । पं. नाथूराम प्रेमी से भ्रातृव्रत मैत्री का समारंभ । 'षट्खंडागम' का विश्लेषण और वीरसेन रचित 'धवला टीका' का सम्पादन कार्यारम्भ |
१९३५
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१९३८ - धर्मपत्नी सोनाबाई उर्फ खिलौना का बिछोह । ज्ञानयज्ञ के संकल्प को पूरा करने में उपसर्गों का आरंभ |
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१९३९ - षट्खंडागम ग्रंथ १ का प्रकाशन और 'जैन इतिहास की पूर्वपीठिका' की कृति की रचना ।
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१९४० - षट्खंडागम ग्रंथ २ का प्रकाशन तथा एकमात्र पुत्र का विवाह । १९४१ - षट्खंडागम ग्रंथ - ३ का प्रकाशन । पारिवारिक विवादों से मुक्ति । १९४२ - षट्खंडागम ग्रंथ - ४ और ५ का प्रकाशन ।