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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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भावभेदना आगम और नोआगम रूप दो भेदों में विभक्त की गई है । इनमें वेदनाअनुयोगद्वार के जानकार उपयोगउक्त जीव को आगमद्रव्यवेदना निर्दिष्ट करके आगमभाववेदना के जीवभाववेदना और अजीविभाववेदना ये दो भेद बतलाये हैं । उनमें जीवभाववेदना औदयिक आदि के भेद से पांच प्रकार तथा अजीवभाववेदना औदयिक व पारिणामिक के भेद से दो प्रकार की निर्दिष्ट की गई है ।
२. वेदनानयविभाषणता
वेदनानिक्षेप अनुयोगद्वार में बतलाये गये वेदना के उन अनेक अर्थो में से यहां कौन सा अर्थ प्रकृत है, यह प्रगट करनेके लिये प्रस्तुत अनुयोगद्वार की आवश्यकता हुई । तदनुसार यहां यह बतलाया गया है कि नैगम, संग्रह और व्यवहार, इन तीन द्रव्यार्थिक नयों के अवलम्बन से वेदना निक्षेप में निर्दिष्ट सभी प्रकार की वेदनायें अपेक्षित हैं । ऋजुसूत्र नय एक स्थापनावेदना को स्वीकार नहीं करता, शेष सब वेदनाओं को वह भी स्वीकार करता है । स्थापनावेदना को स्वीकार न करने का कारण यह है कि स्थापनानिक्षेप में पुरुषसंकल्प के वश से पदार्थ को निज स्वरूप से ग्रहण न करके अन्य स्वरूप से ग्रहण किया जाता है । यह ऋजुसूत्र नयकी दृष्टि में सम्भव नहीं है, क्योंकि, एक समवर्ती वर्तमान पर्याय को विषय करने वाले इस नय के अनुसार पदार्थ का अन्य स्वरूप से परिणमन हो नहीं सकता । शब्दनय नामवेदना और भाववेदना को ही ग्रहण करता है, स्थापनावेदना और द्रव्यवेदना को वह ग्रहण नहीं करता । यहां द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा बन्ध, उदय व सत्व स्वरूप नोआगमकर्मद्रव्य वेदना; ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा उदयगत कर्मवेदना को, तथा शब्दनय की अपेक्षा कर्म के उदय व बन्ध से जनित भाववेदना को प्रकृत बतलाया गया है । ३. वेदनानामविधान
बन्ध, उद्वय व सत्व स्वरूप से जीव में स्थित कर्मरूप पौद्गलिक स्कन्धों में कहां कहां, किस-किस नयका कैसा प्रयोग होता है, इस प्रकार नयाश्रित प्रयोगप्ररूपणा के लिये प्रस्तुत अनुयोगद्वार की आवश्यकता बतलाई गई है । तद्नुसार नैगम और व्यवहार नयके आश्रय से नोआगमद्रव्यकर्मवेदना ज्ञानावरणीय आदि के भेद से आठ प्रकार की कही गई है, कारण यह कि यथाक्रम से उनके अज्ञान, अदर्शन, सुख-दुखवेदन, मिथ्यात्व व कषाय, भवधारण, शरीररचना, गोत्र एवं वीर्यादिविषयक विध्न स्वरूप आठ प्रकार के कार्य देखे जाते हैं। यह हुई वेदनाविधान की प्ररूपणा । नामविधान की प्ररूपणा में ज्ञानावरणीय आदि रूप कर्मद्रव्य को ही 'वेदना' कहा गया है । संग्रहनय की अपेक्षा सामान्य से आठों