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विषय-परिचय (पु.११) वेदना महाधिकार के अन्तर्गत जो वेदनानिक्षेपादि १६ अनुयोगद्वार हैं उनमें से आदि के ४ अनुयोगद्वार पुस्तक १० में प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनसे आगे के वेदनाक्षेत्रविधान और वेदनाकालविधान ये २ अनुयोगद्वार प्रकाशित किये जा रहे हैं। ५. वेदनाक्षेत्र विधान
द्रव्यविधान के समान इस अनुयोगद्वार में भी पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व, ये तीन अनुयोगद्वार हैं । यहाँ प्रारम्भ में श्री वीरसेन स्वामी ने क्षेत्रविधान की सार्थकता प्रगट करते हुए प्रथमत: नाम, स्थापना, द्रव्य व भाव के भेद से क्षेत्र के ४ भेद बतलाकर उनमें से नोआगमद्रव्यक्षेत्र (आकाश) को अधिकारप्राप्त बतलाया है। ज्ञानावरणादि आठ कर्म रूप पुद्गल द्रव्य का नाम वेदना है । समुद्घातादि रूप विविध अवस्थाओं में संकोच व विस्तार को प्राप्त होने वाले जीवप्रदेश उक्त वेदनाका क्षेत्र है । प्रकृत अनुयोगद्वार में चूंकि इसी क्षेत्र की प्ररूपणा की गई है, अतएव 'वेदनाक्षेत्रविधान' यह उसका सार्थक नाम है।
(१) पदमीमांसा - जिस प्रकार द्रव्यविधान (पु.१०) के अन्तर्गत पदमीमांसा अनुयोगद्वार में द्रव्य की अपेक्षा ज्ञानावरणादि कर्मों की वेदना के उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य व अजघन्य तथा देशामर्शकभाव से सूचित सादिअनादि पदों की प्ररूपणा की गई है, ठीक उसी प्रकार से यहाँ इस अनुयोगद्वार में भी उन्हीं १३ पदों की क्षेत्र की अपेक्षा प्ररूपणा की गई है। उससे यहाँ कोई उल्लेखनीय विशेषता नहीं है । (देखिए द्रव्यविधान का विषयपरिचय)
(२) स्वामित्व – अनुयोगद्वार में उत्कृष्ट पद विषयक स्वामित्व और जघन्य पद विषयक स्वामित्व, इस प्रकार स्वामित्व के २ भेद बतलाकर प्रकरण वश यहाँ जघन्य व उत्कृष्ट के विषय में निश्चित पद्धति के अनुसार नामादि रूप निक्षेपविधिकी योजना की गई है इसमें नोआगमद्रव्य जघन्य के ओघ और आदेश की अपेक्षा मुख्तया २ भेद बतलाकर फिर उनमें से भी प्रत्येक के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा ४- ४ भेद बतलाये हैं। उनमें ओघ की अपेक्षा एक परमाणु को द्रव्य-जघन्य कहा गया है । कर्मक्षेत्रजघन्य और नोकर्मक्षेत्रजघन्य के भेद से क्षेत्रजघन्य दो प्रकार का है। इनमें सूक्ष्म निगोद जीव की जघन्य अवगाहनाका नाम कर्मक्षेत्रजघन्य और एक आकाश प्रदेश का नाम नोकर्मक्षेत्रजघन्य बतलाया