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विषय - परिचय (पु. १३)
स्पर्श अनुयोगद्वार से वर्गणाखण्ड प्रारम्भ होता है । इसमें स्पर्श, कर्म और प्रकृति इन तीन अधिकारों के साथ बन्धन अनुयोगद्वार के बन्ध और बन्धनीय इन दो अधिकारों का विस्तार के साथ विवेचन किया गया है । फिर भी इसमें बन्धनीय का आलम्बन लेकर वर्गणाओं का सविस्तर वर्णन किया है, इसलिए इसे वर्गणाखण्ड इस नाम से सम्बोधित करते हैं ।
१. स्पर्श अनुयोगद्वार
स्पर्श छूने को कहते हैं । वह नामस्पर्श और स्थापनास्पर्श आदि के भेद से अनेक प्रकार का है, इसलिए प्रकृत में कौन सा स्पर्श गृहीत है यह बतलाने के लिए यहां स्पर्श अनुयोगद्वार का आलम्बन लेकर स्पर्शनिक्षेप, स्पर्शनयविभाषणता, स्पर्शनामविधान, स्पर्शद्रव्यविधान आदि १६ अधिकारों के द्वारा स्पर्श का विचार किया है।
१. स्पर्श निक्षेप स्पर्शनिक्षेप के नामस्पर्श, स्थापनास्पर्श, द्रव्यस्पर्श, एक क्षेत्रस्पर्श, अनन्तरक्षेत्रस्पर्श, देशस्पर्श, त्वक्स्पर्श, स्पर्शस्पर्श, कर्मस्पर्श, बन्धस्पर्श, भव्यस्पर्श और भावस्पर्श ये तेरह भेद हैं ।
२. स्पर्शनयविभाषणता - अभी जो स्पर्शनिक्षेप के तेरह भेद बतलाए हैं उनमें से कौन स्पर्श किस नय का विषय है, यह बतलाने के लिए यह अधिकार आया है। नयके मुख्य भेद पांच हैं - नैगमनय, व्यवहारनय, संग्रहनय, ऋजुसूत्रनय और शब्दनय । इनमें से नैगमनय नामस्पर्श आदि सब स्पर्शो को स्वीकार करता है । व्यवहार और संग्रहनय बन्धस्पर्श और भव्यस्पर्श को स्वीकार नहीं करते, शेष ग्यारह को स्वीकार करते हैं । ये दोनों नय बन्धस्पर्श और भव्यस्पर्श को क्यों स्वीकार नहीं करते, इसके कारण निर्देश करते हुए वीरसेन स्वामी कहते हैं कि इन नयों की दृष्टि में एक तो बन्धस्पर्श का कर्मस्पर्श में अन्तर्भाव हो जाता है, इसलिए उसे अलग से स्वीकार नहीं करते। दूसरे बन्धस्पर्श बनता ही नहीं है, क्योंकि बन्ध और स्पर्श इनमें कोई ही नहीं है, इसलिए बन्धस्पर्श के समान भव्यस्पर्श भी इनका विषय नहीं है। ऋजुसूत्रनय स्थापनास्पर्श, एक क्षेत्रस्पर्श, अनन्तरस्पर्श, बन्धस्पर्श और भव्यस्पर्श इन पांच को स्वीकार नहीं करता; शेष नौ स्पर्शो को स्वीकार करता है । ऋजुसूत्रनय एकक्षेत्रस्पर्श को क्यों विषय नहीं करता, इसके कारण का निर्देश करते हुए