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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
४०६ ने गणित प्रक्रिया के अवलम्बन से अपनी धवला टीका के अन्तर्गत बहुत विस्तार से किया है। आगे चलकर आयु को छोड़कर शेष ६ कर्मों की उत्कृष्ट वेदना के स्वामियों की प्ररूपणा ज्ञानावरण के ही समान बतला करके फिर आयु कर्म की उत्कृष्ट वेदना के स्वामी की प्ररूपणा करते हुए बतलाया गया है कि पूर्वकोटि प्रमाण आयुवाला जो जीव जलचर जीवों में पूर्वकोटि मात्र आयु को दीर्घ आयुबन्धक काल, तत्प्रायोग्य संक्लेश और तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योग के द्वारा बांधता है; योगयवमध्य के ऊपर अन्तर्मुहूर्त काल रहा है, अन्तिम जीवगुणहानिस्थानान्तर में आवली के असंख्यातवें भाग रहा है, तत्पश्चात् क्रम से मृत्यु को प्राप्त होकर पूर्वकोटि आयुवाले जलचर जीवों में उत्पन्न हुआ है, वहां पर सवलघु अन्तर्मुहूर्त में सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ है, दीर्घ आयुबन्धक काल मेंतत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योग के द्वारा पूर्वकोटि प्रमाण जलचर-आयु को दुबारा बांधता है, योगयवमध्य के ऊपर अन्तर्मुहूर्त काल रहा है, अन्तिम गुणहानिस्थानान्तर में आवली के असंख्यातवें भाग रहा है, तथा जो बहुत बहुत वार साता वेदनीय के बन्ध योग्य काल से सहित हुआ है, ऐसे जीव के अनन्तर समय में सब परभविक आयु के बन्ध की परिसमाप्ति होती है उसी समय उसके आयु कर्म की वेदना द्रव्य से उत्कृष्ट होती है । सभी कर्मो की उत्कृष्ट वेदना से भिन्न अनुत्कृष्ट वेदना कही गई है।
ज्ञानावरणीय की जघन्य वेदना से स्वामी की प्ररूपणा करते हुए कहा गया है कि जो जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन कर्मस्थिति प्रमाण सूक्ष्म निगोद जीवों में रहा है, उनमें परिभ्रमण करता हुआ जो अपर्याप्तों में बहुत बार और पर्याप्तों में थोड़े ही बार उत्पन्न हुआ है, जिसका अपर्याप्तकाल बहुत पर्याप्तकाल थोड़ा रहा है, जब-जब आयु को बांधता है तब-तब तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योग से बांधता है, जो उपरिम स्थितियों के निषेक के जघन्य पद को और अधस्तन स्थितियों के निषेक के उत्कृष्ट पद को करता है, जो बहुतबहुत बार जघन्य योगस्थाना को प्राप्त होता है, बहुत-बहुत बार मंद सक्लेश रूप परिणामों से परिणमता है, इस प्रकार से निगोद जीवों में परिभ्रमण करके पश्चात् जो बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तों से उत्पन्न होकर वहां सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त काल में सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ है, तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त में मरण को प्राप्त होकर जो पूर्वकोटि आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ है, जिसने वहां पर गर्भ से निकलने के पश्चात् आठ वर्ष का होकर संयम को धारणा किया है, कुछ कम पूर्वकोटि काल तक संयमका परिपालन करके जो जीवित के थोड़े से शेष रहने पर मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ है, जो मिथ्यात्व सम्बन्धी सबसे स्तोक असंयमकाल में रहा है, तत्पश्चात् मिथ्यात्व के साथ मरण को प्राप्त होकर जो दस हजार वर्ष की आयुवाले देवों में