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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १०. भागाभागानुगम
इस अनुयोगद्वार में ८८ सूत्रों में चौदह मार्गणाओं के अनुसार सर्व जीवों की अपेक्षा बन्धकों के भागाभाग की प्ररूपणा की गई है। यहाँ भाग से अभिप्राय अनन्तवें भाग, असंख्यातवें भाग और संख्यातवें भाग से, तथा अभाग से अभिप्राय अनन्त बहुभाग, असंख्यात बहुभाग व संख्यात बहुभाग से है । उदाहरण स्वरूप 'नारकी जीव सब जीवों की अपेक्षा कितने भाग प्रमाण हैं ?' इस प्रश्न के उत्तर में उन्हें सब जीवों के अनन्तवें भाग प्रमाण बतलाया गया है। ११. अल्पबहुत्वानुगम
इस अनुयोगद्वार में २०५ सूत्रों में चौदह मार्गणाओं के आश्रय से जीवसमासों का तुलनात्मक प्रमाणप्ररूपण किया गया है । इस प्रकरण में एक यह बात ध्यान देने योग्य है कि सूत्रकार ने वनस्पतिकाय जीवों से निगोद जीवों का प्रमाण विशेष अधिक बतलाया है जिसका अभिप्राय धवलाकार ने यह प्रकट किया है कि जो एकेन्द्रिय जीव निगोद जीवों से प्रतिष्ठित हैं उनका वनस्पतिकाय जीवों के भीतर ग्रहण नहीं किया गया। यहां शंकाकार के यह पूछने पर कि उक्त जीवों की वनस्पति संज्ञा क्यों नहीं मानी गई, धवलाकार ने उत्तर दिया है कि “यह प्रश्न गौतम से करो, हमने तो यहां उनका अभिप्राय कह दिया ।" (पृ. ५४१)
इन ग्यारह अधिकारों के पश्चात् एक अधिकार चूलिकारूप महादंड का है जिसके ७२ सूत्रों में मार्गणा विभाग को छोड़कर गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य पर्याप्त से लेकर निगोद जीवों तक के जीवसमासों का अल्पबहुत्व प्रतिपादन किया है और उसी के साथ क्षुद्रकबन्ध खण्ड समाप्त होता है।