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विषय-परिचय (पु.९)
षट्खंडागम के चतुर्थ खण्ड का नाम वेदना है । इस खण्ड की उत्पत्ति का कुछ परिचय पुस्तक १ की प्रस्तावना के पृष्ठ ६५ व ७२ पर कराया जा चुका है व इसकी खण्डव्यवस्था के सम्बन्ध में जो शंकायें उत्पन्न हुई थीं उनका निराकरण पुस्तक २ की प्रस्तावना में किया जा चुका है। इस खण्ड में अग्रायणीय पूर्व की पांचवीं वस्तु चयनलब्धि के चतुर्थ प्राभृत कर्मप्रकृति के चौबीस अनुयोगद्वारों में से प्रथम दो अर्थात् कृति और वेदना अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा की गई है, एवं वेदना अधिकार का अधिक विस्तार होने के कारण सम्पूर्ण खण्ड का नाम ही वेदना रखा गया है ।
प्रस्तुत पुस्तक में कृति अनुयोगद्वार की प्ररूपणा है । इसके प्रारम्भ में सूत्रकार भगवन्त भूतबलि द्वारा ‘णमो जिणाणं, णमो अहिजिणाणं' इत्यादि ४४ सूत्रों से मंगल किया गया है । ठीक यही मंगल ‘योनिप्राभृत' ग्रन्थ में गणधरवलय मंत्र के रूप में पाया जाता है । यह ग्रन्थ धरसेनाचार्य द्वारा उनके शिष्य पुष्पदन्त और भूतबलि निमित्त रचा गया माना जाता है। इसका विशेष परिचय प्रथम पुस्तक की प्रस्तावना में पर कराया गया है । (देखिये Comparative and Critical Study of Mantrashastra by M.B. Jhaveri Appendix A. ) । इन मंगलसूत्रों की टीका में आचार्य वीरसेन स्वामी ने देशावधि, परमावधि, सर्वावधि, ऋजुमति व विपुलमति मन:पर्यय, केवलज्ञान एवं मतिज्ञान के अन्तर्गत कोष्ठबुद्धि, बीजबुद्धि, पदानुसारिणी और संभिन्नश्रोतृबुद्धिकी विशद प्ररूपणा की है। उक्त बुद्धि ऋद्धि के साथ ही यहां अन्य सभी ऋद्धियों का मननीय विवेचन किया गया है । इन मंगलसूत्रों में अन्तिम सूत्र ‘णमो वद्धमाणबुद्धरिसिस्स' है । इसकी टीका में धवलाकार ने विस्तार से विवेचन करके उक्त मंगल को अनिबद्ध मंगल सिद्ध किया है, क्योंकि, वह प्रस्तुत ग्रन्थकार की रचना न होकर गौतम स्वामी द्वारा रचित है । धवलाकार जीव स्थान खण्ड के आदि में किये गये पंचणमोकार मंत्र रूप मंगल को निबद्ध मंगल कह आये हैं । इस भेद के आधार से धवलाकार का यह स्पष्ट अभिप्राय जाना जाता है कि वे भगवान् पुष्पदन्ताचार्य को ही णमोकारमंत्र के आदिकर्त्ता स्वीकार करते हैं । इसका सविस्तार विवेचन पुस्तक २ की प्रस्तावना के में किया जा चुका है । उस समय पत्र-पत्रिकाओं में इस विषय की चर्चा भी चली और णमोकार मंत्र अनादित्व पर जोर दिया गया है । किन्तु विद्वानों ने धवलाकार के अभिप्राय को समझने व उस पर गम्भीरता से विचार करने का प्रयत्न नहीं किया ।