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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३४१ असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, ४ प्रमत्तसंयत, ५ अप्रमत्तसंयत और ६ सयोगिकेवली । इन गुणस्थानों में केवल एक जीव की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर बतलाया गया है, जिसे ग्रन्थ-अध्ययन से पाठक भली भांति जान सकेंगें।
जिस प्रकार ओघ से अन्तर का निरूपण किया गया है, उसी प्रकार आदेश की अपेक्षा भी उन-उन मार्गणाओं में संभव गुणस्थानों का अन्तर जानना चाहिए। मार्गणाओं में आठ सान्तरमार्गणाएं होती हैं, अर्थात् जिनका अन्तर होता है । जैसे१. उपशमसम्यक्त्वमार्गणा, २. सूक्ष्मसाम्परायसंयममार्गणा, ३. आहारककाययोगमार्गणा, ४. आहारकमिश्र काययोगमार्गणा, ५. वैक्रियिकमिश्रकाययोगमार्गणा, ६. लब्ध्यपर्याप्तमनुष्यगतिमार्गणा, ७. सासादनसम्यक्त्वमार्गणा और ८. सम्यग्मिथशयात्वमार्गणा। इन आठों का उत्कृष्ट अन्तर काल क्रमश: १ सात दिन, २ छह मास, ३ वर्षपृथक्त्व, ४ वर्ष वर्षपृथक्त्व, ५ बारह मुहूर्त, और अन्तिम तीस सान्तर मार्गणाओं का जघन्य अन्तरकाल एक समयप्रमाण ही है। इन सान्तर मार्गणाओं के अतिरिक्त शेष सब मार्गणाएं नानाजीवों की अपेक्षा अन्तर-रहित हैं, यह ग्रन्थ के स्वाध्याय से सरलतापूर्वक हृदयंगम किया जा सकेगा। २. भावानुगम
कर्मो के उपशम,क्षय आदि के निमित्त से जीव के जो परिणामविशेष होते हैं, उन्हें भाव कहते हैं। वे भाव पांच प्रकार के होते हैं - १. औदयिकभाव, २. औपशमिकभाव, ३. क्षायिकभाव, ४. क्षायोपशमिकभाव और ५ .पारिणामिकभाव । कर्मो के उदय से होने वाले भावों को औदयिक भाव कहते हैं। इसके इक्कीस भेद हैं - चार गतियां (नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति), तीन लिंग (स्त्री, पुरुष, और नपुंसकलिंग), चार कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ), मिथ्यादर्शन, असिद्धत्व, अज्ञान, छह लेश्याएं (कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्य और शुल्कलेश्या), तथा असंयम । मोहनीयकर्म के उपशम से (क्योंकि, शेष सात कर्मो का उपशम नहीं होता है) उत्पन्न होने वाले भावों को औपशमिक भाव कहते हैं। इसके दो भेद हैं - १ औपशमिकसम्यक्त्व और २ औपशमिकचारित्र । कर्मो के क्षय से उत्पन्न होने वाले भावों को क्षायिकभाव कहते हैं। इसके नौ भेद हैं- १. क्षायिकसम्यक्त्व, २. क्षायिकचारित्र ३. क्षायिकज्ञान, ४. क्षायिकदर्शन, ५. क्षायिकदान, ६. क्षायिकलाभ, ७. क्षायिकंभोग, ८. क्षायिक उपभोग और ९.क्षायिक वीर्य । कर्मो के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाले भावों को क्षायोपशमिकभाव कहते हैं । इनके अट्ठारह भेद हैं - चार ज्ञान (मति, श्रुत,