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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका उनसे इनका प्रमाण दूना अर्थात् पांच करोड़ तेरानवे लाख अट्ठानवे हजार दो सौ छह (५९३९८२०६) है । प्रमत्तसंयत्तों से संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं, क्योंकि, वे पल्योपमके असंख्यात के भागप्रमाण हैं । संयतासंयतों से सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं, क्योंकि, संयमासंयम की अपेक्षा सासादनसम्यक्त्व का पाना बहुतसुलभ है । यहां पर गुणकार का प्रमाण आवली का असंख्यातवां भाग जानना चाहिए, अर्थात् आवली के असंख्यातवें भाग में जितने समय होते हैं, उनके द्वारा संयतासंयत जीवों की राशि को गुणित करने पर जो प्रमाण आता है, उतने सासादन सम्यग्दृष्टि जीव है। सासादनसम्यग्दृष्टियों से सम्यग्मिथयादृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं, क्योंकि, दूसरे गुणस्थान की अपेक्षा तीसरे गुणस्थान का काल संख्यातगुणा है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियों से असंयत सम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं, क्योंकि, तीसरे गुणस्थान को प्राप्त होने वाली राशि की अपेक्षा चौथे गुणस्थान को प्राप्त होने वाली राशि आवली के असंख्यातवें भागगुणित हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों से मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं, क्योंकि, मिथ्यादृष्टि जीव अनन्त होते हैं। इस प्रकार यह चौदहों गुणस्थानों की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा गया है, जिसका मूल आधार द्रव्यप्रमाण हैं । यह अल्पबहुत्व गुणस्थानों में दो दृष्टि से बताया गया है प्रवेश की अपेक्षा और संचयकाल की अपेक्षा । जिन गुणस्थानों में अन्तर का अभाव है अर्थात् जो गुणस्थान सर्वकाल संभव है, उनका अल्पबहुत्व संचयकाल की ही अपेक्षा से कहा गया है । ऐसे गुणस्थान, जैसा कि अन्तरप्ररूपणा में बताया जा चुका है, मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार और सयोगिकेवली, ये छह हैं। जिन गुणस्थानों में अन्तर पड़ता है, उनमें अल्पबहत्व प्रवेश और संचयकाल, इन दोनों की अपेक्षा बताया गया है । जैसे- अन्तरकाल समाप्त होने के पश्चात् उपशामक और क्षपक गुणस्थानों में कम से कम एक दो तीन से लगाकर अधिक से अधिक ५४ और १०८ तक जीव एक समय में प्रवेश कर सकते हैं, और निरन्तर आठ समयों में प्रवेश करने पर उनके संचय का प्रमाण क्रमश: ३०४ और ६०८ तक एक-एक गुणस्थान में हो जाता है। दूसरे और तीसरे गुणस्थान का प्रवेश और संचय ग्रन्थानुसार जानना चाहिए। ऐसे गुणस्थान चारों उपशामक,चारों क्षपक, अगोगिकेवली सम्यग्मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि हैं।
इसके अतिरिक्त इस अनुयोगद्वार में मूलसूत्र कार ने एक ही गुणसथान में सम्यक्त्व की अपेक्षा से भी अल्पबहुत्व बताया है । जैसे - असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं । उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव