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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका . प्रकृतिसमुत्कीर्तन
प्रथम सम्यक्त्व बन्धस्थान
अभिमुख के
बन्धयोग्य है मूलप्रकृति | उ. प्रकृति
या नहीं
जघन्य
स्थिति | आबाधा| स्थिति |आबाधा
११ पर्याप्त | अपूर्वक. तक
है
|
अन्तर्मु.
१२ अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि | नहीं १३ प्रत्येक- | अपूर्वक.तक है
शरीर
१४ साधारण | मिथ्यादृष्टि
शरीर
sho
१५ स्थिर | अपूर्वक.तक १६ अस्थिर
प्रमत्तसं. , १७ शुभ | अप्रपूर्वक. , १८ अशुभ | प्रमत्तसं., | १९ सुभग | अपूर्वक. ,
२० दुर्भग मिथ्या.सासा. २१. सुस्वर | अपूर्वक.तक २२ दुःस्वर | मिथ्या.सासा. २३ आदेय | अपूर्वक.तक २४ अनादेय | मिथ्या.सासा. २५ यश:कीर्ति सूक्ष्मसा. तक २६ अयश:- | प्रमत्तसं. , |
ho ho
ho
ho
नहीं
२७ निर्माण २८ तीर्थंकर असंयत सम्य-
म्दृष्टि से
अपूर्वकरण तक ७ गोत्र | १ उच्च सूक्ष्मसा. तक
अन्त:कोडाकोडी
है।
२नीच मिथ्या. सासा.७वें नरक
के जीव बांधते हैं
है
८ अंतराय | ५ दानान्तरा सूक्ष्मसा. तक
यादि
।
३०,, |
३,
अन्तर्मुहूर्त
x इसे पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन ग्रहण करना चाहिये ।