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________________ ૩૭૩ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका . प्रकृतिसमुत्कीर्तन प्रथम सम्यक्त्व बन्धस्थान अभिमुख के बन्धयोग्य है मूलप्रकृति | उ. प्रकृति या नहीं जघन्य स्थिति | आबाधा| स्थिति |आबाधा ११ पर्याप्त | अपूर्वक. तक है | अन्तर्मु. १२ अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि | नहीं १३ प्रत्येक- | अपूर्वक.तक है शरीर १४ साधारण | मिथ्यादृष्टि शरीर sho १५ स्थिर | अपूर्वक.तक १६ अस्थिर प्रमत्तसं. , १७ शुभ | अप्रपूर्वक. , १८ अशुभ | प्रमत्तसं., | १९ सुभग | अपूर्वक. , २० दुर्भग मिथ्या.सासा. २१. सुस्वर | अपूर्वक.तक २२ दुःस्वर | मिथ्या.सासा. २३ आदेय | अपूर्वक.तक २४ अनादेय | मिथ्या.सासा. २५ यश:कीर्ति सूक्ष्मसा. तक २६ अयश:- | प्रमत्तसं. , | ho ho ho ho नहीं २७ निर्माण २८ तीर्थंकर असंयत सम्य- म्दृष्टि से अपूर्वकरण तक ७ गोत्र | १ उच्च सूक्ष्मसा. तक अन्त:कोडाकोडी है। २नीच मिथ्या. सासा.७वें नरक के जीव बांधते हैं है ८ अंतराय | ५ दानान्तरा सूक्ष्मसा. तक यादि । ३०,, | ३, अन्तर्मुहूर्त x इसे पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन ग्रहण करना चाहिये ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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