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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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स्थानसमुत्कीर्तनचूलिकानुसार स्थानक्रम से प्रकृतियों का बन्ध
१. मिथ्यादृष्टि जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां
५. ज्ञानावरणीय, ९ दर्शनावरणीय, २ वेदनीय, मिथ्यात्व, १६ कषाय, अन्यतम वेद, हास्य और रति, अथवा अरति और शोक, भय और जुगुप्सा, ये २२ मोहनीय, ४ आयु, नरकगति आदि २८ नामकर्म सूत्र (६१) अथवा तिर्यंचगति आदि ३०, २९, २६, २५, या २३ नामकर्म (सूत्र ६६-८३) अथवा मनुष्यगति आदि २९ या २५ नामकर्म (सूत्र ९१-९४) अथवा देवगति आदि २८ नामकर्म (सूत्र १०६), नीच या उच्चगोत्र, और ५ अन्तराय । २. सासादन जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां
५ ज्ञानावरणीय, ९ दर्शनावरणीय, २ वेदनीय, १६ कषाय, स्त्री व पुरुष वेद में से अन्यतर वेद, हास्य और रति अथवा अरति और शोक, भय और जुगुप्सा, ये २१ मोहनीय, नारकायु को छोड़ शेष ३ आयु, मनुष्यगति आदि २९ नामकर्म (सूत्र १०६), नीच या उच्च गोत्र, और ५ अन्तराय। ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां ।
५ ज्ञानावरणीय, निद्रानिद्रादि ३ को छोड़ शेष ६ दर्शनावरणीय, २ वेदनीय, अप्रत्याख्यानादि १२ कषाय, पुरुषवेद, हास्य और रति, अथवा अरति और शोक, भय और जुगुप्सा, ये १७ मोहनीय, यहां आयुबन्ध होता नहीं, मनुष्यगति आदि २९ नामकर्म (सूत्र ८७), उच्च गोत्र, और ५ अन्तराय। ४. असंयतसम्यग्दृष्टि जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां
५. ज्ञानावरणीय, निद्रानिद्रादि को छोड़ शेष ६ दर्शनावरणीय,२ वेदनीय, मिन के अनुसार १७ मोहनीय, मनुष्य और देव आयु मनुष्यगति आदि ३० नामकर्म (सूत्र ८५ - ८६) अथवा २९ नामकर्म (सूत्र ८७) अथवा देवगति आदि २९ नामकर्म (सूत्र १०२), उच्च गोत्र और ५ अन्तराय ।