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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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उत्कृष्ट
।
जघन्य
प्रकृतिसमुत्कीर्तन |
बन्धस्थान मूलप्रकृति | उ. प्रकृति
प्रथम सम्यक्त्व अभिमुख के बन्धयोग्य है या नहीं
स्थिति
| आबाधा स्थिति आबाधा
२ सा.x
(९) वर्ण | ५ कृष्णादि | अपूर्व तक (१०) गंध | १ सुरभि ।।
| २ दुरभि (११) रस ५ तिकादिक , (१२) स्पर्श | ८ कर्कशादि | (१३) आनु-१ नरकगति. | मिथ्यादृष्टि पूर्वी र तिर्यंचगति मिथ्या.सासा. ७.वें नरक
के जीव | बांधते हैं
: : : :
:
:
|३ मनुष्यगति | असंयत देव नारकी | १५ को. |१ : व.स| ,
सम्य. तक | बांधते हैं ४ देवगति. | अपूर्व. तक तिर्यच मनुष्य
| बांधते हैं (१४) विहायो- १ प्रशस्त
गति |२ अप्रशस्त मिथ्या. सासा.
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::
(अपिंड
प्रकृतियां)
: : : : : :
: : : : : :
१ अगुरुलघु २ उपघात ३ परघात ४ उच्छ्वास ५ आताप मिथ्यादृष्टि नहीं ६ उद्योत मिथ्या.सासा.७वें नरक
के जीव विकल्प से
बांधते हैं ७ त्रस | अपूर्व. तक ८ स्थावर | मिथ्यादृष्टि ९बादर | अपूर्व. तक
: : :
१० सूक्ष्म | | मिथ्यादृष्टि
नहीं
x इसे पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन ग्रहण करना चाहिये ।