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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ३७२ उत्कृष्ट । जघन्य प्रकृतिसमुत्कीर्तन | बन्धस्थान मूलप्रकृति | उ. प्रकृति प्रथम सम्यक्त्व अभिमुख के बन्धयोग्य है या नहीं स्थिति | आबाधा स्थिति आबाधा २ सा.x (९) वर्ण | ५ कृष्णादि | अपूर्व तक (१०) गंध | १ सुरभि ।। | २ दुरभि (११) रस ५ तिकादिक , (१२) स्पर्श | ८ कर्कशादि | (१३) आनु-१ नरकगति. | मिथ्यादृष्टि पूर्वी र तिर्यंचगति मिथ्या.सासा. ७.वें नरक के जीव | बांधते हैं : : : : : : |३ मनुष्यगति | असंयत देव नारकी | १५ को. |१ : व.स| , सम्य. तक | बांधते हैं ४ देवगति. | अपूर्व. तक तिर्यच मनुष्य | बांधते हैं (१४) विहायो- १ प्रशस्त गति |२ अप्रशस्त मिथ्या. सासा. : :: :: (अपिंड प्रकृतियां) : : : : : : : : : : : : १ अगुरुलघु २ उपघात ३ परघात ४ उच्छ्वास ५ आताप मिथ्यादृष्टि नहीं ६ उद्योत मिथ्या.सासा.७वें नरक के जीव विकल्प से बांधते हैं ७ त्रस | अपूर्व. तक ८ स्थावर | मिथ्यादृष्टि ९बादर | अपूर्व. तक : : : १० सूक्ष्म | | मिथ्यादृष्टि नहीं x इसे पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन ग्रहण करना चाहिये ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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