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अन्त:
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कोडाकोडी
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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३७१ | प्रकृतिसमुत्कीर्तन
प्रथम सम्यक्त्व उत्कृष्ट
जघन्य बन्धस्थान
अभिमुख के
बन्धयोग्य है | मूलप्रकृति | उ. प्रकृति
स्थिति या नहीं
आबाधा स्थिति आबाधा (२) जाति | १ एकेन्द्रिय | मिथ्यादृष्टि | नहीं २० को. - सा. x | अन्तर्मु.
२ द्वीन्द्रिय ३ त्रीन्द्रिय ४ चतुरिन्द्रिय ५पंचेन्द्रिय अपूर्वकरण तक है
१ औदारिक असं.सम्य.तक देव नारकी | (३) शरीर ५
बांधते हैं (४) शरीर- ||२ वैक्रियिक | अपूर्व. तक | तिर्य.मनुष्य बंधन ५ | आहारक | अप्रमत्त और | नहीं। अपूर्वकरण
कोडाकोडी (५) शरीरसंघात ५ || ४ तैजस | अपूर्वक.तक | है
६५ कार्मण (६) शरीर |१ समचतुरस्त्र अपूर्वक.तक | संस्थान २ न्यग्रोध- मिथ्या.सासा.
परिमंडल ३ स्वाति ४ कुब्जक ५ वामन
मिथ्यादृष्टि (७) शरीरां |१ औदारिक । असयंत | देव नारकी गोपांग
सम्य.तक | बांधते हैं २ वैक्रियिक | अपूर्व तक | तिर्य.मनुष्य
बांधते हैं ३ आहारक अप्रमत्त
नहीं अपूर्वकरण
कोड़ाकोड़ी (८) शरीर १ वज्रभूषण-[ असंयत । देवनारकी
सम्य.तक । बांधते हैं २ वज्रनाराच मिथ्या.सासा.
१२, ३ नाराच ४ अर्धनाराच ५ कीलिक ६ असंप्राप्त | मिथ्यादृष्टि
सेवर्त
अन्त:
अन्तः
१०को.
नाराच
x इसे पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन ग्रहण करना चाहिये ।