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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३७० प्रकृतिसमुत्कीर्तन । प्रथम सम्यक्त्व उत्कृष्ट
जघन्य बन्धस्थान
| अभिमुख के
बन्धयोग्य है। मूलप्रकृति | उ. प्रकृति
स्थिति | आबाधा स्थिति या नहीं
आबाधा संज्वलन क्रोधा मिथ्यादृष्टि से | है ४० को. | ४ व.स. | २ मास | अन्तर्मु.
अनि. क. तक ,,माया |
सूक्ष्मसाम्पराय
"मान
,, लोभ
तक
(२) नोकषाय १ स्त्रीवेद | मिथ्यादृष्टि वेदनीय
और सासादन २ पुरुषवेद
| अनिवृत्ति
करण तक ३ नपुंसकवेद| मिध्यादृष्टि ४ हास्य | अपूर्वक.तक ५ रति ६ अरति ७ शोक
८ भय
९ जुगुप्सा ५ आयु | १ नारकायु मिथ्यादृष्टि २ तिर्यचायु मिथ्यादृष्टि
और सासादन ३ मनुष्यायु मिश्र को छोड़
असंयत तक
| अप्रमत्त तक ६ नाम (पिंडप्रकृतियां १ गति | १ नरक | मिथ्यादृष्टि | नहीं |२० को.सा| २ व.स. |- सा. x २ तिथंच मिथ्या.सासा. सावतीं पृथि- , | ,
वी के नारकी
बांधते हैं ३ मनुष्य असंयत सम्य.| देव नारकी |१५ को.सा. १ - व.स ,
| तक ४ देव | अप्रमत्त तक तिर्यंच मनुष्य १०, | १ व.स. | ,
बांधते हैं
४ देवायु
x इसे पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन ग्रहण करना चाहिये।