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बन्धस्थान | अभिमुख के
षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३६९ १ प्रकृतिसमुत्कीर्तन, स्थानसमुत्कीर्तन, तीनों दंडक व उत्कृष्ट और
जघन्य स्थितियों की तालिका प्रकृतिसमुत्कीर्तन । प्रथम सम्यक्त्व
उत्कृष्ट
जघन्य बन्धयोग्य है | मूलप्रकृति | उ. प्रकृति
या नहीं
स्थिति | आबाधा स्थिति आबाधा ज्ञानावरणीय | मतिज्ञाना | मिथ्यादृष्टि से
३० कोड़ा | ३ वर्ष | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मु. | वरणादि ५ लेकर सू. सा.
कोड़ी संयम तक
सागरोपम २ दर्शनावरणीय | १ नि. नि.) | मिथ्यादृष्टि २प्र.प्र. व
" | " | , सा.x | ,
३स्त्यान)
सासादन
४ निद्रा, | मिथ्यात्व से ५प्रचला अपूर्वकरण के
प्र. सप्तम
भाग ६ चक्षुद.)| मिथ्यात्व से ७ अचक्षु. सूक्ष्मसाम्प ८ अवधि राय तक ९ केवल.
"
|
"
अन्तर्मुहूर्त | ,
१५ को | १ व.स. | १२ मुहू. |
"
३०, | ३.
सा.x
| ७,
सा.x | ,
वेदनीय १साता.
मिथ्यात्व से
सयोगी तक २ असाता. मिथ्यात्व से
प्रमत्त तक ४ | मोहनीय १ सम्यक्त्व) (अ) दर्शनमोह| २ मिथ्यात्व मिथ्यात्व
३ सम्यग्मि. x (आ) चारित्र मो.१ कसाय-| अनन्तानु)| मिथ्यादृष्टि वेदनीय बन्धी
क्रोधादि ४) सासादन अप्रत्याख्याना मिथ्यादृष्टि से क्रोधादि ४|| असंयत
सम्यग्दृष्टि तक
| ४०, | ४, |
सा.x |
,
प्रत्याख्याना) मिथ्यादृष्टि से
वरण संयतासंयत क्रोधादि ४) तक