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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ५. संयतासंयत जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां
५ ज्ञानावरणीय, निद्रानिद्रादि ३ को छोड़ शेष ६ दर्शनावरणीय, २ वेदनीय, प्रत्याख्यानावरणादि ८ कषाय एवं मिश्र के अनुसार शेष ५, ये १३ मोहनीय, देवायु, देवगति आदि २९ नामकर्म (सूत्र १०२), उच्चगोत्र और ५ अन्तराय । ६. संयत जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां
५ ज्ञानावरणीय सूक्ष्मसाम्पराय तक । निद्रानिद्रादि ३ को छोड़ शेष ६ दर्शनावरणीय अपूर्वकरण के प्रथम सप्तम भाग तक, तथा निद्रानिद्रादि ५ को छोड़ शेष ४ अपूर्वकरण के द्वितीय भाग से लेकर सूक्ष्मसाम्पराय तक । असातावेदनीय प्रमत्तसंयत तक, तथा सातावेदनीय सयोगी तक । ४ संज्वलन कषाय एवं मिश्र के अनुसार पुरुषवेदादि ५ ये ९ मोहनीय प्रमत्त से लेकर अपूर्वकरण तक, एवं ४ संज्वलन और पुरुषवेद ये पांच मोहनीय अनिवृत्तिकरण तक, तथा इसी युगस्थान में क्रमशः पुरुषवेदरहित ४ संज्वलन, क्रोध संज्वलन को छोड़ केवल ३ संज्वलन, एवं क्रोध मान को छोड़ केवल २ संज्वलन, सूक्ष्मसाम्पराय में केवल एक लोभसंज्वलन मोहनीय । देवायु अप्रमत्त गुणस्थान तक । देवगति आदि ३१, ३०, २९ या २८ नामकर्म अप्रमत्त व अपूर्वकरण संयत के (सूत्र ९६-१०४), यश:कीर्ति नामकर्म अपूर्वकरण के ७ वें भाग से सूक्ष्मसाम्पराय संयत तक । उच्च गोत्र सक्षमसाम्पराय तक । ५ अन्तराय सूक्ष्मसाम्पराय तक ।