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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३२३ समाधान - मूल में 'मुक्कमारणंतियरासी' पाठ आया है, जिसका अर्थ - “किया है मारणान्तिकसमुद्धात जिन्होंने " ऐसा किया है । प्रकरण को देखते हुए यही अर्थ समुचित प्रतीत होता है, जिसकी कि पुष्टि गो.जी.गा. ५४४ (पृ.९५२) की टीका में आए हुए 'क्रियमाणमारणान्तिकदंडस्य'; 'तिर्यग्जीवमुक्तोपपाददंडस्य', तथा, ५४७ की गाथा की टीका में (पृ. ५६७) आये हुए ‘अष्टमपृथवीसंबंधिवादरपर्याप्तपृथवीकायेषु उप्पत्तुं मुक्ततत्समुद्धातदंडानां' आदि पाठों से भी होती है । ध्यान देने की बात यह है कि द्वितीय व तृतीय उद्धरण में जिस अर्थ में 'मुक्त' शब्द का प्रयोग हुआ है, प्रथम अवतरण में उसी अर्थ में 'क्रियमाण' शब्द का उपयोग हुआ है और यह कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि प्राकृत 'मुक्क' शब्द की संस्कृतच्छाया 'मुक्त' ही होती है । पंडित टोडरमल्लजी ने भी उक्त स्थल पर 'मुक्त' शब्द का यही अर्थ किया है । इस प्रकार 'मुक्क' शब्द के किये गये अर्थ में कोई शंका नहीं रह जाती है। पुस्तक ४, पृष्ठ १०० ४. शंका - पृ १०० पर मूल पाठ में कुछ पाठ छूटा हुआ प्रतीत होता है ?
(जैन सन्देश ३०-४-४२) समाधान - शंकाकार ने यद्यपि पृष्ठ का नाम मात्र ही दिया है, किन्तु यह स्पष्ट नहीं किया है कि उक्त पेज पर २४ वें सूत्र की व्याख्या में पाठ छूटा हुआ उन्हें प्रतीत हुआ या २५ वें सूत्र की व्याख्या में । जहां तक हमारा अनुमान जाता है कि २४ वें सूत्र की व्याख्या में 'बादरवाउअपज्जत्तेसु अंतभावादो' के पूर्व कुछ पाठ उन्हें स्खलित जान पड़ा है। पर न तो उक्त स्थल पर काम में ली जाने वाली तीनों प्रतियों में ही तदतिरिक्त कोई नवीन पाठ है, और न मूडबिद्री से ही कोई संशोधन आया है। फिर मौजूदा पंक्ति का अर्थ भी वहां बैठ जाता है। पुस्तक. ४, पृ. १३५
५. शंका - उपशमश्रेणी से उतरने वाले उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों के अतिरिक्त अन्य उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों के मरण का निषेध है, इससे वह ध्वनित होता है कि उपशम श्रेणी में चढ़ने वाले अपशमसुभ्यम्दृष्टि जीवों का मरण नहीं होता । परन्तु पृष्ठ ३५१ से ३५४ तक कई स्थानों पर स्पष्टता से चढ़ते हुए भी मरण लिखा है, सो क्या कारण है ?
(नानकचन्द जैन, खतौली, पत्र ता. १-४-४२)