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१ वर्ष
, अटट
षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३१० पुनरावृत्ति भारभूत (cumbersome) है । बौद्धों और जैनियों को अपने दर्शन और विश्वरचना संबंधी विचारों के लिये १०७ से बहुत बड़ी संख्याओं की आवश्यकता पड़ी। अतएव उन्होंने और बड़ी-बड़ी संख्याओं के नाम कल्पित कर लिये । जैनियों के संख्यानामों का तो अब हमें पता नहीं है, किन्तु बौद्धों द्वारा कल्पित संख्या- नामों की निम्न श्रेणिका चित्ताकर्षक है - १ एक
१५ अब्बुद = (१०,०००,०००) २ दस : १०
१६ निरब्बुद : (१०,०००,०००) ३ सत = १००
१७ अहह : (१०,०००,०००) ४ सहस्स : १,०००
१८ अबब : (१०,०००,०००)२ १ जैनियों के प्राचीन साहित्य में दीर्घकाल - प्रमाणों के सूचक नामों की तालिका पाई जाती है जो एक वर्ष प्रमाण से प्रारम्भ होती है। यह नामावली इस प्रकार है -
१७ अटटांग : ८४ त्रुटित २ युग : ५वर्ष
१८ अटट : , लाख अटटांग ३ पूर्वांग : ८४ लाख वर्ष
१९ अममांग ४ पूर्व : , लाख पूर्वांग
२० अमम
लाख अममांग ५ नयुतांग : , पूर्व
२१ हाहांग
अमम ६नयुत : , लाख नयतांग
२२ हाहा
: , लाख हाहांग ७ कुमुदांग : ,नयुत
२३ हूहांग
, हाहा ८ कुमुद : , लाख कुमुदांग
: , लाख हूहांग ९पद्मांग : कुमुद
२५ लतांग १०पद्म ,लाख पद्मांग
२६ लता
__ : , लाख लतांग ११ नलिनांग : , पद्म
२७ महालतांग
, लता १२ नलिन : , लाख नलिनांग २८ महालता : , लाख महालतांग १३ कमलांग : , नलिन
२९ श्रीकल्प : , लाख महालता १४ कमल : , लाख कमलांग ३० हस्तप्रहेलित : , लाख श्रीकल्प १५ त्रुटितांग : , कमल
३१ अचलप्र : , लाख हस्तप्रहेलित १६ त्रुटित : , लाख त्रुटितांग
यह नामावली त्रिलोकप्रज्ञप्ति (४-६ वीं शताब्दि) हरिवंशपुराण (८ वीं शताब्दि) और राजवार्तिक (८ वीं शताब्दि) में कुछ नामभेदों के साथ पाई जाती है । त्रिलोकप्रज्ञप्ति के एक उल्लेखानुसार अचलप्रका प्रमाण ८४ को ३१ वार परस्पर गुणा करने से प्राप्त होता है - अचलप्र - ८४" तथा यह संख्या ९० अंक प्रमाण होगी। किन्तु लघुरिक्थ तालिका (Logarithmic tables) के अनुसार ८४३१ संख्या ६० अंक प्रमाण ही प्राप्त होती है । देखिये धवला, भाग ३, प्रस्तावना व फुट नोट, पृ.३४ - सम्पादक