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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
२९७ धवला में उक्त प्रक्रिया का प्रयोग तीन बार से अधिक अपेक्षित नहीं हुआ है। किन्तु तृतीय वर्गितसंवर्गित का उल्लेख अनेकवार ' बड़ी संख्याओं व असंख्यात व अनन्त के संबंध में किया गया है । इस प्रक्रिया में कितनी बड़ी संख्या प्राप्त होती है, इसका ज्ञान इस बात से हो सकता है कि २ का तृतीय बार वर्गितसंवर्गित रूप २५६२५६ हो जाता है। घातांक सिद्धान्त
उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि धवलाकार घातांक सिद्धान्तसे पूर्णत: परिचित थे। जैसे -
(१) अ म अन : अम + न (२) अ/अन : अम - न (३) (अ)न : अमन
उक्त सिद्धान्तों के प्रयोग संबंधी उदाहरण धवला में अनेक हैं। एक रोचक उदाहरण निम्न प्रकार का है २ - कहा गया है कि २ के ७ वें वर्गमें २ के छठवें वर्ग का भाग देने से २ का छठवां वर्ग लब्ध आता है । अर्थात् -
जब दाशमिकक्रम का ज्ञान नहीं हो पाया था तब द्विगुणक्रम और अर्धक्रमकी प्रक्रियाएं (The operations of duplation and mediation) महत्वपूर्ण समझी जाती थीं। भारतीय गणितशास्त्र के ग्रंथों में इन प्रक्रियाओं का कोई चिन्ह नहीं मिलता । किन्तु इन प्रक्रियाओं को मिश्र और यूनान के निवासी महत्वपूर्ण गिनते थे, और उनके अंकगणित संबंधी ग्रंथों में वे तदानुसार स्वीकार की जाती थीं । धवला में इन प्रक्रियाओं के चिन्ह मिलते हैं। दो या अन्य संख्याओं के उत्तरोत्तर वर्गीकरण का विचार निश्चयत:द्विगुणक्रम की प्रक्रिया से ही परिस्फुटित हुआ होगा, और यह द्विगुणक्रम की प्रक्रिया दाशमिकक्रम के प्रचार से पूर्व भारतवर्ष में अवश्य प्रचलित रही होगी । उसी प्रकार अर्धक्रमपद्धति का भी पता चलता है । धवला में इस प्रक्रिया को हम २,३,४ आदि आधार वाले लघुरिक्थ सिद्धान्त में साधारणीकृत पाते हैं।
१.धवला, भाग ३, पृ. २० आदि । २ धवला भाग ३, पृ. २५३ आदि।