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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका कदापि नहीं करना चाहिये यहां तो सिर्फ एक मार्गणा के भीतर राशियों की परस्पर अधिकता या अल्पता का ही क्रम जाना जा सकता है । यद्यपि गणित के सूक्ष्म विचार से यह वैषम्य भी संभवत: दूर किया जा सकता था, किन्तु उससे फिर संदृष्टियां सुगम होने की अपेक्षा दुर्गम सी हो जातीं, जिससे हमारा अभिप्राय पूर्ण नहीं होता । चूंकि यहां प्रत्येक मार्गणा के भीतर जीवराशियों का प्रमाण क्रम निर्दिष्ट करना अभीष्ट है, अतएव राशियां बहत्व से अल्पत्व की ओर क्रम से रखी गई हैं, उनके रूढक्रम से नहीं । हां, सिद्ध सर्वत्र अन्त की ओर ही रखे हैं। कहीं-कहीं राशि के जो अंक दिये गये हैं उनसे कुछ अधिक प्रमाण विवक्षित है, क्योंकि, उसमें कोई अन्य अल्प राशि भी प्रविष्ट होती है। ऐसे स्थानों पर अंक के आगे धनका चिन्ह + बना दिया गया है, और अंक देकर टिप्पणी में उस विवक्षित राशि का उल्लेख कर दिया गया है। इस दिशा में यह प्रयत्न, जहां तक हमें ज्ञात है, प्रथम ही है, अत: सावधानी रखने पर भी कुछ त्रुटियां हो सकती हैं । यदि पाठकों के ध्यान में आवें, तो हमें अवश्य सूचित करें।
चौदह मार्गणास्थानों में जीवराशियों के प्रमाण की संदृष्टियां (मार्गणा शीर्षक के आगे दी गई पृष्ठसंख्या उस मार्गणा के भागाभाग की सूचक है.।)
१गति मार्गणा (पृ.२०७) | देव | नारक मनुष्य | सिद्ध | सर्व जीव अनन्त असंख्य असंख्य असंख्य || अनन्त
तिर्यंच
अनन्त
२००
१६
२ इन्द्रिय मार्गणा (पृ. ३१९) १ इंद्रिय २ इंद्रिय |३ इंद्रिय | ४ इंद्रिय ५ इंद्रिय | अतींद्रिय | सर्व जीव अनन्त | असंख्य | असंख्य | असंख्य | असंख्य
अनन्त
अनन्त
१६
१६