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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
२९४ अंधकारपूर्ण समय, अर्थात् पांचवीं शताब्दी से पूर्व की बातें मिलती हैं। विशेष अध्ययन से यह बात और भी पुष्ट हो जाती है कि धवला की गणितशास्त्रीय सामग्री सन् ५०० से पूर्व की हैं। उदाहरणार्थ - धवला में वर्णित अनेक प्रक्रियायें किसी भी अन्य ज्ञात ग्रंथ में नहीं पाई जाती, तथा इसमें कुछ ऐसी स्थूलता का आभास भी है जिसकी झलक पश्चात् के भारतीय गणितशास्त्र से परिचित विद्वानों को सरलता से मिल सकती है। धवला के गणित भाग में वह परिपूर्णता और परिष्कार नहीं है जो आर्यभटीय और उसके पश्चात् के ग्रंथों में
धवलान्तर्गत गणितशास्त्र
संख्याएं और संकेत - धवलाकार दाशमिकक्रम से पूर्णत: परिचित है । इसके प्रमाण सर्वत्र उपलब्ध होते हैं। हम यहां धवला के अन्तर्गत अवतरणों से ली गई संख्याओं को व्यक्त करने की कुछ पद्धतियों को उपस्थित करते हैं -
(१) ७९९९९९८ को ऐसी संख्या कहा है कि जिसके आदि में ७, अन्त में ८ और मध्य में छह बार ९ की पुनरावृत्ति है ।।
(२) ४६६६६६६४ व्यक्त किया गया है - चौसठ, छह सौ, छयासठ हजार, छयासठ लाख, और चार करोड़।
(३) २२७५९४९८ व्यक्त किया गया है - दो करोड़, सत्ताइस लाख, निन्यान्नवे हजार, चार सौ और अन्ठान्नवे ३ ।
इसमें से (१) में जिस पद्धति का उपयोग किया है वह जैन साहित्य में अन्य स्थानों में भी पायी जाती है, और गणितसारसंग्रह में " भी कुछ स्थानों में है । उससे दाशमिकक्रम का सुपरिचय सिद्ध होता है । (२) में छोटी संख्याएं पहले व्यक्त की गई हैं। यह संस्कृत साहित्य में प्रचलित साधारण रीति के अनुसार नहीं है । उसी प्रकार यहां संकेत-क्रम सौ है, न कि दश जो कि साधारणत: संस्कृत साहित्य में पाया जाता है । किन्तु पाली और प्राकृत में सौ का क्रम ही प्राय: उपयोग में लाया गया है । (३) में सबसे बड़ी संख्या पहले व्यक्त की गई है । अवतरण (२) और (३) स्पष्टत: भिन्न स्थानों से लिये गये हैं।
१. ध. भाग ३, पृष्ठ ९८, गाथा ५१ । देखो गोम्मटसार, जीवकांड, पृष्ठ ६३३. २. ध. भाग ३, पृ. ९९, गाथा ५२. ३. ध. भाग ३, पृ. १००, गाथा ५३. ४. देखो - मणितसारसंग्रह १, २७. और भी देखो - दत्त और सिंह का हिन्दूगणितशास्त्र का इतिहास, जिल्द १, लाहौर १९३५, पृ. १६. ५. दत्त और सिंह, पूर्ववत्, पृ. १४.