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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
२६० प्रश्न यह उपस्थित होता है कि सूत्ररूप परमागम किसे कहना चाहिये । क्या वीरसेनजिनसेन रचित धवला जयधवला टीकाएं सूत्ररूप परमागम है, या यतिवृषम के चूर्णिसूत्र परमागम है, या भगवत् पुष्पदन्त और भूतबलितथा गुणधर आचार्यो के रचे कर्मप्राभृत और कषायप्राभृत के सूत्र व सूत्र-गथाएं सूत्ररूप परमागम हैं ? या ये सभी सूत्ररूप परमागम हैं ? सूत्र की सामान्य पारिभाषा तो यह है -
अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद् गूढनिर्णयम् । अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः॥
इसके अनुसार तो पाणिनि के व्याकरणसूत्र और वात्स्यायन के कामसूत्र भी सूत्र हैं, और पुष्पदन्त.भूतबलिकृत कर्मप्राभृत या षट्खंडागम और उपास्वाति के तत्वार्थसूत्र आदि ग्रंथ सभी सूत्र कहे जाते हैं । किन्तु यदि जैन आगमानुसार सूत्र का विशेष अर्थ यहां अपेक्षित हैं तो उसकी एक परिभाषा हमें शिवकोटि आचार्य के भगवती आराधना में मिलती है जहां कहा गया है कि
सुत्तं गणहरकहिय तहेव पत्तेयबुद्धकहियं च । सुदकेवलिणा कहियं अभिण्णदसपुविकहियं च ॥ ३४ ॥
इस गाथा की टीका विजयोदया में कहा है कि तीर्थकरों के कहे हुए अर्थ को जो ग्रथित करते हैं वे गणधर हैं, जिन्हें बिना परोपदेश के स्वयं ज्ञान उत्पन्न हो जाय, वे स्वयंबुद्ध हैं, समस्त श्रुतांग के धारक श्रुतकेवली हैं और जिन्होंने दशपूर्वो का अध्ययन कर लिया है
और विद्याओं से चलायमान नहीं होते, वे अभिन्नदशपूर्वी हैं। इनमें से किसी के द्वारा भी ग्रथित ग्रंथ को सूत्र कहते हैं।
अब यदि हम इस कसौटी पर षट्खंडागम सिद्धान्त को या अन्य उपलब्ध ग्रंथों को कसें तो ये ग्रंथ 'सूत्र' सिद्ध नहीं होते, क्योंकि, न तो इनके रचयिता तीर्थकर हैं, न प्रत्येकबुद्ध, न श्रुतकेवली और न अभिन्नदशपूर्वी हैं । धरसेनाचार्य तो कवल अंग-पूर्वो का एकदेश ज्ञान आचार्य परम्परा से मिला था । वह उन्होंने ग्रंथविच्छेद के भयसे पुष्पदन्त और भूतबलि आचार्यो को सिखा दिया और उसके आधार पर कुछ ग्रंथरचना पुष्पदन्त ने और कुछ भूतबलिने की, जो षट्खंडागम में नाम से उपलब्ध है और जिस पर विक्रम की नौवीं शताब्दि में वीरसेनाचार्य ने धवला टीका लिखी । इस प्रकार यदि हम आशाधरजी द्वारा उक्त सूत्र को सामान्य अर्थ में लेते हैं तो षट्खंडागम सूत्रों के अनुसार तत्वार्थाधिगमसूत्र भी सूत्र