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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
टिप्पणियों के विषय में
२३. शंका - धवला के फुटनोटों में दिये गये भगवती आराधना की गाथाओं को मूलाराधना के नाम से उल्लेखित किया गया है, यह ठीक नहीं । जबकि ग्रन्थकार शिवार्य स्वयं उसे भगवती आराधना लिखते हैं, तब मूलाराधना नाम उचित प्रतीत नहीं होता । मूलाराधनादर्पण तो पं. आशाधरजी की टीका का नाम है, जिसे उन्होंने अन्य टीकाओं से व्यावृत्ति करने के लिए दिया था । यदि आपने किसी प्राचीन प्रति में ग्रन्थ का नाम मूलाराधना देखा हो तो कृपया लिखने का अनुग्रह कीजिए । (पं. परमानन्दजी शास्त्री, पत्र २९.१०.३९) समाधान - टिप्पणियों के साथ जो ग्रंथ-नाम दिये गये हैं वे उन टिप्पणियों के आधारभूत प्रकाशित ग्रंथों के नाम हैं। शोलापुर से जो ग्रन्थ छपा है, उस पर ग्रन्थ का नाम 'मूलाराधना' दिया गया है। वही प्रति हमारी टिप्पणियों का आधार रही है । अतएव उसी का नामोल्लेख कर दिया गया है । ग्रन्थ के नामादि सम्बन्धी इतिहास में जाने के लिए वह उपयुक्त स्थल नहीं था ।
२४. शंका - टिप्पणियों में अधिकांश तुलना श्वेताम्बर ग्रन्थों पर से की गई है । अच्छा होता यदि इस कार्य में दिगम्बर ग्रन्थों का और भी अधिकता के साथ उपयोग किया जाता। इससे तुलना - कार्य और भी अधिक प्रशस्त रूप से सम्पन्न होता ।
समाधान
(अनेकान्त ३, पृ. २०१) (जैनसंदेश, १५ फरवरी १९४०) (जैनगजट, ३ जुलाई १९४०) प्रथम भाग में कुछ टिप्पणियों की संख्या ८५५ है । उनमें से दिगम्बर ग्रन्थों से ६२२ और श्वेताम्बर ग्रन्थों से २२८ तथा अन्य ग्रन्थों से ५ टिप्पणियां ली गई हैं । यदि ग्रन्थ- संख्या की दृष्टि से भी देखा जाय तो टिप्पणी में उपयोग किये गये ग्रन्थों की संख्या ७७ है, जिनमें दिगम्बर ग्रंथ ४०, श्वेताम्बर ग्रन्थ ३०, अजैन ग्रन्थ १, व कोष, व्याकरण, अलंकारादि विषयक ग्रन्थों की संख्या ६ है । इससे स्पष्ट है कि अधिकांश तुलना किन ग्रन्थों पर से की गई है । जहां जिस ग्रन्थ की जो टिप्पणी उपयुक्त प्रतीत हुई वह ली गई है। इसमें ध्येय यही रखा गया है कि इस सिद्धान्त विषय से सम्बन्ध रखने वाले सभी साहित्य की ओर पाठकों की दृष्टि जा सके ।
द्रव्यप्रमाणानुगम (पु. ३)
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१. द्रव्यप्रमाणानुगम की उत्पत्ति
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षट्खंडागम के प्रस्तुत भाग में जीवद्रव्य के प्रमाण का ज्ञान कराया गया है, अर्थात्
यहां यह बतलाया गया है कि समस्त जीवराशि कितनी है, तथा उसमें भिन्न-भिन्न गुणस्थानों