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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
२२२ शंका - हुंडावसर्पिणीकाल में जैसे अन्य अनेकों असंभव बातें संभव हो जाती हैं, उसी प्रकार से अन्य गति से आकर सम्यग्दृष्टि जीव स्त्रियों में क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ?
समाधान - सूत्र नं. ९३ में कहा है कि 'असंयतसम्यग्दृष्टि जीव स्त्रियों में उत्पन्न नहीं होते हैं।
इस अभिप्राय के लिये मूल पाठ में 'चेन्न' के पश्चात् का विराम हटा लेना चाहिये । तथापि आगे के संदर्भ से इस अभिप्राय का सामंजस्य यथोचित नहीं बैठता। पृष्ठ ३४२
२२. शंका - धवलसिद्धान्तानुसार जो द्रव्य से पुरुष होवे और भावों में स्त्रीरूप हो उसे योनिमती कहते हैं । किन्तु गोम्मटसार जीवकांड गाथा १५०, १५६, ३८० से ज्ञात होता है कि द्रव्य में स्त्री हो, और परिणति में स्त्रीभाव हो उसको योनिमती कहते हैं। इस प्रकार की योनिमती के १४ गुणस्थान माने हैं। इसका समाधान कीजिए। (न. लक्ष्मीचंद्रजी)
___समाधान- योनिमती तिर्यच स्त्रियों के उदय प्रकृतियां बतलाते हुए कर्मकांड गाथा नं. २९६ में कहा है - पुंसंद्वणित्थिजुदा जोणिणीये' अर्थात् योनिमती के पूर्वोक्त ९७ प्रकृतियों में से पुरुषवेद और नपुंसक वेद को घटाकर स्त्री वेद के मिला देने पर ९६ प्रकृतियों का उदय होता है। मनुष्यनियों के विषय में कहा है - 'मणुसिणिए त्थीसहिदा' ॥ ३०१ ॥ अर्थात् पूर्वोक्त १०० प्रकृतियों में स्त्रीवेद के मिला देने पर और तीर्थंकर आदि ५ प्रकृतियां निकाल देने पर मनुष्यनियों ९६ प्रकृतियों का उदय होता है । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यहां योनिमती उसे कहा है जिसके स्त्रीवेद का उदय हो । ऐसे जीव के द्रव्य वेद कोई भी रहेगा तो भी वह योनिमती कहा जायगा । अब रही योनिमती के १४ गुणस्थान की बात, सो कर्मभूमिज स्त्रियों के अन्त के तीन संहननों का ही उदय होता है, ऐसा गो. कर्मकांड की गाथा ३२ से प्रगट है । परन्तु शुक्लध्यान, क्षपकश्रेण्यारोहणादि कार्य प्रथम संहननवाले के ही होते हैं। इससे यहतो स्पष्ट है कि द्रव्यस्त्रियों के १४ गुणस्थान नहीं होते हैं । पर गोम्मटसार में स्त्रीवेदी के १४ गुणस्थान बतलाये अवश्य हैं, इसलिए वहां द्रव्य से पुरुष और भाव से स्त्रीवेदी का ही योनिमती पद से ग्रहण करना चाहिए । इस विषय में गोम्मटसार और धवल सिद्धान्त में कोई मतभेद नहीं है । द्रव्यस्त्री के आदि के पांच गुणस्थान ही होते हैं। गोम्मटसार की गाथा नं. १५० में भाव-वेद की मुख्यता से ही योनिमती का ग्रहण है। गाथा नं. १५६ और १५९ में टीकाकारने योनिमती से द्रव्यस्त्री का ग्रहण किया है, किन्तु वहां भी परिणति में स्त्री भाव हो, ऐसा नहीं कहा गया है।