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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
त्रैकाल्य योगी पद्यनन्दि कौमारदेव
प्रभाचन्द्र
कुलभूषण कुलचन्द्र
माघनन्दिमुनि (कोल्लापुरीय)
गंडविमुक्तदेव
श्रुतकीर्ति
कनकनन्दि देवचंद्र, माघन्दि
विद्यदेव, देवकीर्ति पं.दे.के शिष्य शुभचंद्र त्रै.दे., रामचंद्र त्रै.देव.
भानुकीर्ति
देवकीर्ति
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि उक्त पद्यनन्दि आदि आचार्य किस काल में उत्पन्न हुए ? जिस उपर्युक्त शिलालेख में उनका उल्लेख आया है, उसमें भी समय का उल्लेख कुछ नहीं पाया जाता । किन्तु वहां उस लेख का यह प्रयोजन अवश्य बतलाया गया है कि महामंडलाचार्य देवकीर्ति पंडितदेव ने कोल्लापुर की रूपनारायण वसदि के अधीन केल्लेगेरेय प्रतापपुर का पुनरुद्वार कराया था, तथा जिननाथपुर में एक दानशाला स्थापित की थी। उन्हीं अपने गुरु की परोक्ष विनय के लिए महाप्रधान सर्वाधिकारी हिरिय भंडारी अभिनवगंग-दंडनायक श्री हुल्लराज ने उनकी निषद्या निर्माण कराई । तथा गुरु के अन्य शिष्य लक्खनंदि, माधव और त्रिभुवनदेवने महादान व पूजाभिषेक करके प्रतिष्ठाकी । हुल्लराज अपरनाम हुल्लप वाजिवंशके यक्षराज और लोकाम्बिका के पुत्र तथा यदुवंशी राजा नारसिंह के मंत्री कहे गऐ हैं । इन यादव व होय्यसलवंशीय राजा नारसिंह तथा उनके मंत्री हुल्लराज या हुल्लप का उल्लेख अन्य शिलालेखों में भी पायाजाता है, जिनसे उनकी जैनधर्म में श्रद्धा का अच्छा परिचय मिलता है । (देखो जैन शिलालेख संग्रहभू.पृ९४ आदि)। पर उक्त विषय पर प्रकाश डालनेवाला शिलालेख नं. ३९ है जिसमें देवकीर्ति की प्रशस्ति के अतिरिक्त उनके स्वर्गवास का समय शक १०८५ सुभानु संवत्सर आषाढ़ शुक्ल ९ बुधवार सूर्योदयकाल बतलाया गया है, और कहा गया है कि उनके शिष्य लक्खनंदि, माधवचन्द्र और त्रिभुवनमल्ल ने गुरुभक्ति से उनकी निषद्या की प्रतिष्ठा कराई।