________________
षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१७९ पच्चयादीणं फासम्मि णिरूविद- प्रत्ययादि रूप, स्पर्श में कहे गये जीव से वावाराणं पयडिणिक्खेवादि- सोलस - संबद्ध और जीव के साथ संबद्ध होने से अणियोगद्दारेहि सहाव-परूवणा कीरदे। उत्पन्न हुए गुण के द्वारा कर्म अधिकार में
कथित रूप से व्यापार करने वाले पुद्गलों के स्वभाव का निरूपण प्रकृति निक्षेप आदि सोलह अधिकारों के द्वारा किया
गया है। ६. बंधण - जंतं बंधणं तं चउन्विहं-बंधो ६. बन्धन - बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बंधगा बंधणिज्जं बंधविधाणमिदि। तत्थ बन्ध विधान, इस प्रकार बन्धन बंधो जीवकम्मपदेसाणं सादियमणादियं अर्थाधिकार के चार भेद हैं। उनमें से बन्ध च बंधं वण्णेदि । बंधगाहियारो अधिकार जीव और कर्मप्रदेशों का सादि अट्टविहकम्म बंधगे परूवेदि, सो च . और अनादि रूप बन्ध का वर्णन करता खुद्दाबंधे परूविदो । बंधणिज्जं है। बन्धक अधिकार आठ प्रकार के कर्मों बंधपाओग्ग -तदपाओग्ग-पोग्गल- दव्वं का बन्धक का प्रतिपादन करता है जिसका परूवेदि। बंधविहाणं पयडिबंधं ठिदिबंण कथन क्षुल्लकबन्ध में किया जा चुका है। अणुभागबंधं पदेसबंधं च परूवेदि। बन्ध के योग्य पुद्गलद्रव्य का कथन
बन्धनीय अधिकार करता है। बन्ध विधान अधिकार प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभाग बन्ध और प्रदेशबन्ध, इन चार
बन्ध के भेदों का कथन करता है। ७. णिबंधण - णिबंधणं मूलुत्तरपयडीणं ७. निबन्धन - निबन्धन अधिकार मूलप्रकृति निबंधणं वण्णेदि । जहा चक्खिं दियं और उत्तरप्रकृतियों के निबन्धन का कथन रूवम्मिणिबद्ध, सोदिदियं सदम्मि करता है। जैसे, चक्षुरिन्द्रिय रूप में निबद्ध णिवद्धं, धाणिं दियं गंधम्मि णिबद्धं, है । श्रोत्रेन्द्रिय शब्द में निबद्ध है । जिभिंदियं रसग्मि णिबद्धं, फासिंदियं घ्राणेन्द्रिय गन्ध में निबद्ध है। जिह्वा इन्द्रिय कक्खदादिफासेसु णिबद्धं, तहा इमाओ रस में निबद्ध है और स्पर्शनेन्द्रिय कर्कश पयडीओ एदेसु अत्थेसु णिबद्धाओ त्ति आदि स्पर्श में निबद्ध है। उसी प्रकार ये णिबंधणं परूवेदि, एसो भावत्थो। मूलप्रकृतियां और उत्तरप्रकृतियां इन
विषयों में निबद्ध हैं, इस प्रकार निबन्धन