________________
षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१८५ पुव्वम्मि पंचमम्मि दु दसमे वत्थुम्मि पाहुडे तदिये। पेजं ति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुडंणाम ॥१॥ गाहासदे असीदे अत्थे पण्णरसधा विहत्तम्मि। वोच्छामि सुत्तगाहा जइ गाहा जम्मि अत्थम्मि ।
टीका - सोलसपदसहस्सेहि वे कोडाकोडिएकसट्टिलक्ख-सत्तावण्णसहस्सवेसद- वाणउदिकौटि - वासट्टिलक्ख-अट्ठसहस्सक्खरुप्पण्णोहि जं भणिदं गणहरदेवेण इंदभूदिणा कसायपाहुडं तमसीदि-सदगाहाहि चेव जाणावेमि त्ति गाहासदे असीदे त्ति पढमपइजा कदा । तत्थ अणेगेहि अत्थाहियारेहि परूविदं कसाय-पाहुडमेत्थ पण्णारसेहि चेव अत्थाहियारेहि परूवेमि त्ति जाणावणळं अत्थे पण्णारसधा विहत्तम्मि त्ति विदियपइज्जा कदा।
संपहि कसायपाहुडस्स पण्णारस-अस्थाहियार-परूवणटुं गुणहरभडारओ दो सुत्तगाहाऔ पठदि -
पेजदोस-विहत्तीट्ठिदि-अणुभागे च बंधगे चेय। वेदगएवजोगे वि य चउट्ठाण-वियंजणे चे य॥ सम्मत्त-देसविरयी संजम-उवसामणा च खवणा च । दंसण-चरित्तमोहे अद्धापरिमाणणिद्देसो॥
इसका तात्पर्य यह है कि यह कसापाहुड पंचम पूर्व की दसम वस्तु के पेजनामक तृतीय पाहुड से उत्पन्न हुआ है । इन्द्रभूति गौतमकृत उस मूलग्रंथ का परिमाण बहुत भारी था और अधिकार भी अनेक थे। प्रस्तुत कसायपाहुड में १८० गाथाएं १५ अधिकारों में विभक्तहैं । गाथाओं में सूचित पन्द्रह अधिकार जयधवलाकार ने तीन प्रकार से बतलाये हैं। इनमें से जो विभाग उन्होंने चूर्णिकार यतिवृषक के आधार से दिये हैं , वेनिम्नप्रकार हैं - १. पेजदोस
२. विहत्ती-द्विदि-अणुभाग ३. बंधग (अकर्मबंध) बंधग ४. संकम (कर्मबंध) बंधग ५. उदय (कर्मोदय) वेदग
६. उदीरणा (अकर्मोदय) वेदग ७. उवजोग
८. चउट्ठाण