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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१८० अर्थाधिकार प्ररूपण करता है यह भावार्थ
जानना चाहिये। ८. पक्कम - पक्कमेत्ति अणियो गद्दारं ८. प्रक्रम- प्रक्रम अर्थाधिकार जो वर्गणा
अकम्मसरूवेण हिदाणं स्कन्ध अभी कर्मरूप से स्थित नहीं हैं, कम्मइयवग्गणाखंधाणं मूलुत्तर किंतु जो मूलप्रकृति और उत्तरप्रकृति रूप पयडिसरूवेणपरिणममाणाणं पयडि- से परिणमन करने वाले हैं और जो प्रकृति, हिदि-अणुभागविसे सेण विसिट्ठाणं । स्थिति और अनुभाग की विशेषता से . पदेसपरूवणं कुणदि।
वैशिष्टय को प्राप्त हैं ऐसे कर्मवर्गणास्कन्धों
के प्रदेशों का प्ररूपण करता है। ९. उवक्कम- उवक्कमेत्ति अणियोगद्दारसस्स ९. उपक्रम - उपक्रम अर्थाधिकार के चार
चत्तारि अहियारा - बंधणोवक्कमो अधिकार हैं बन्धनोपक्रम, उदीरणोपक्रम, उदीरणोवक्कमो उवसामणोवक्कमो उपशामनोपक्रम और विपरिणामोपक्रम । विपरिणामो बक्कमो चेदि । तत्थ उनमें से बन्धनोपक्रम अधिकार बन्ध होने बंधोवक्कमो बंधविदियसमयप्पहुडि के दूसरे समय से लेकर प्रकृति, स्थिति, अट्टण्णं कम्माणं पयडि-द्विदि - अणुभाग- अनुभाग और प्रदेश रूप ज्ञानावरणादि पदेसाणं बंधवण्णणं कुणदि । आठों कर्मों के बन्ध का वर्णन करता है। उदीरणोवक्कमो पयडि हिदि - उदीरणोपक्रमअधिकार प्रकृति, स्थिति, अणुभागपदेसाणमुदीरंण परूवेदि। अनुभाग और प्रदेशों की उदीरणा का कथन उवसामणोवक्कमो पसत्थोवसा- करता है । उपशामनोपक्रम अधिकार, मणमप्पसत्थोवसामणाणं च पयडि- प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश के भेद हिदि-अणुभाग-पदेसभेदभिण्णं परूवेदि। से भेद को प्राप्त हुए प्रशस्तोपशमना और विपरिणाममुवकमो पयडि-द्विदि- अप्रशस्तोपशमना का कथन करता है । अणुभाग-पदेसाणं - देस- णिज्जरं विपरिणा-मोपक्रम अधिकार प्रकृति, सयलणिजरं च परूवेदि।
स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों की देशनिर्जरा और सकलनिर्जरा का कथन करता है।
१०. उदय - उदणाणियोगद्दारं पयडि-द्विदि- १०. उदय - उदय अर्याधिकार प्रकृति, अणुभाग-पदेसुदयं परूवेदि। स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों के उदय का
कथन करता है।