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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१४५ ग्रंथ का एक एक शब्द उनकी दृष्टि और कलम से गुजर चुका है । उनके मत से पूर्वोक्त 'मंगलकरणादो' पद में हमारे मंगलाकरणादो रुप सुधार की पुष्टि होती है- .
दूसरी बात जो महाधवल के अवतरणों में हमें मिलती है वह खंडविभाग से संबंध रखती है । महाबंध पर कोई पंचिका भी उस प्रति में ग्रथित है जैसा कि अवतरण की प्रथम पंक्ति से ज्ञात होता है -
'वोच्छामि संतकम्मे पंचियरूवेण विवरणं सुमहत्थं ' इसी पंचिकाकार ने आगे चलकर कहा है -
'महाकम्मपयडिपाहुडस्स कदि-वेदणाओ (दि) चौव्वीसमणियोगद्दारेसु तत्थ कदिवेदणा त्तिजाणि अणियोगद्दाराणि वेदणाखंडम्हि, पुणो पास (-कम्म-पयडि-बंधणाणि) चत्तारि अणियोगद्वारेसु तत्थ बंध बंधणिजणामणियोगेहि सह वग्गणाखंडम्हि, पुणो बंधविधाणमणियोगो खुद्दाबंधम्मि सप्पवंचेण परूविदाणि । पुणो तेहिंतो सेसद्वारसणियोगद्दाराणि सत्तकम्मे सव्वाणि परूविदाणि । तो वि तस्सइगंभीरत्तादो अत्थविसम-पदाणमत्थे थोरुद्धयेण पंचियसरूवेण भणिस्सामो' ।
इस अवतरण में शब्दों में अशुद्धियां हैं । कोष्टक के भीतर के सुधार या जोड़े हुए पाठ मेरे हैं । पर उस पर से तथा इससे आगे जो कुछ कहा गया है उससे यह स्पष्ट जान पड़ा कि यहां निबंधनादि अठारह अधिकारों की पंजिका दी गई है । उन अठारह अधिकारों का नाम 'सत्तकम्म' था, जिससे इन्द्रनन्दि के सत्कर्म संबंधी उल्लेख की पूरी पुष्टि होती है। प्राप्त अवतरण पर से महाधवल की प्रति व उसके विषय आदि के संबंध में अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं, और प्रति की परीक्षा की बड़ी अभिलाषा उत्पन्न होती है, किन्तु उस सबका नियंत्रण करके प्राकृत विषय पर आने से उक्त अवतरण में प्रस्तुतोपयोगी यह बात स्पष्ट रूप से मालूम हो जाती है, कि कृति और वेदना अनुयोगद्वार वेदनाखंड के साथ फस, कम्म, पयडि और बंधन के बंध और बंधनीय भेद वर्गणाखंड के भीतर हैं। इससे हमारे विषय का निर्विवाद रूप से निर्णय हो जाता है।
प्रथम जिल्द की भूमिका में ठीक इसी प्रकार खंड विभाग का परिचय कराया जा चुका है उस परिचय की ओर पाठकों का ध्यान पुन: आकर्षित किया जाता है।
१. यह अवतरण सं. पं. जिल्द १ की भूमिका पृ. ६८ पर दिया जा चुका है। पर वहाँ भूल से 'पुणो तेहिंतो' आदि वाक्य छूट गया है। अत: प्रकृततोपयोगी उस अवतरण को यहाँ फिर पूरा दे दिया है।