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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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३. क्या धवलादिश्रुत में उल्लिखित आर्यमंखु और नागहत्थी तथा श्वेताम्बर पट्टावलियों के अज्जमंगु और नागहत्थी एक ही हैं ? यदि एक ही हैं, तो एक जगह दोनों की • समसामयिकता प्रकट होने और दूसरी जगह उनके बीच एक सौ तीस वर्ष का अन्तर पड़ने का क्या कारण हो सकता है ? पट्टावलियों में भी कहीं उनके नाम देने और कहीं छोड़ दिये • जाने का भी कारण क्या है ?
४. जिस कम्मपयडी में नागहत्थी ने प्रधानता प्राप्त की थी क्या वह पुष्पदन्त भूतबलि द्वारा उद्घारित कम्मपर्याडपाहुड हो सकता है ?
५. दिगम्बर और श्वेताम्बर पट्टावलियों आदि में उक्त आचार्यों के काल निर्देश में वैषम्य पड़ने का कारण क्या है ?
इस प्रश्नों में से अनेक के उत्तर पूर्वोक्त विवेचन में सूचित या ध्वनित पाये
जावेंगें, फिर भी उन सबका प्रामाणिकता से उत्तर देना बिना और भी विशेष खोज और
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विचार के संभव नहीं है । इस कार्य के लिये जितने समय की आवश्यकता है उसकी भी अभी गुंजाइश नहीं है । अत: यहां इतना ही कहकर यह प्रसंग छोड़ा जाता है कि उक्त आचार्यों संबंधी दोनों परम्पराओं के उल्लेखों का भारी रहस्य अवश्य है, जिसके उद्घाटन से दोनों सम्प्रदायों के प्राचीन इतिहास और उनके बीच साहित्यिक आदान प्रदान के विषय पर विशेष प्रकाश पड़ने की आशा की जा सकती है।
इस प्रकरण को समाप्त करने से पूर्व यहां यह भी प्रकट कर देना उचित प्रतीत होता है कि श्वेताम्बर आगम के अन्तर्गत भगवती सूत्र में जो पंच- नमोकार मंगलपाया जाता है उसमें पंचम पद अर्थात् 'णमो लोए सव्वसाहूणं' के स्थान पर ' णमो बंभीए लिवीए' (ब्राह्मी लिपि को नमस्कार ) ऐसा पद दिया गया है। उड़ीसा की हाथी गुफा में जो कलिंग नरेश खारवेल का शिलालेख पाया जाता है और जिसका समय ईस्वी पूर्व अनुमान किया जाता है, उसमें आदि मंगल इस प्रकार पाया जाता है।
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णमो अरहंताणं । णमो सब सिधाणं ।
ये पाठभेद प्रासंगिक है या किसी परिपाटी को लिये हुए हैं, यह विषय विचारणीय है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में किसी किसी के मत से णमोकार सूत्र अनार्ष है ' |
१' ये तु वदन्ति नमस्कार पाठ एवं नार्ष ...... ' इत्यादि दखो अभिधानराजेन्द्र - णमोकार, पृ. १८३५.