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बारहवें श्रुताङ्ग दृष्टिवाद का परिचय
हम सत्प्ररूपणा की भूमिका में कह आये हैं कि बारहवां श्रुतांग दृष्टिवाद श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार भी विच्छिन्न हो गया, तथा दिगम्बर मान्यतानुसार उसके कुछ अंशों का उद्वार षट्खंडागम और कषायप्राभृत में पाया जाता है । किन्तु शेष भागों के प्रकरणों व विषय आदि का संक्षिप्त परिचय दोनों सम्प्रदायों के साहित्य में बिखरा हुआ पाया जाता है । अत: लुप्त हुए श्रुतांग के इस परिचय को हम दोनों सम्प्रदायों के प्राचीन प्रमाणभूत ग्रंथों के आधार पर यहां तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिससे पाठक इस महत्वपूर्ण विषय में रुचि दिखला सकें और दोनों सम्प्रदायों की मान्यताओं में समानता और विषमता तथा दोनों की परस्पर प्रतिपूरकता की ओर ध्यान दे सकें । इस परिचय का मूलाधार श्वेताम्बर सम्प्रदाय के नन्दीसूत्र और समवायांगसूत्र हैं तथा दिगम्बर सम्प्रदाय के धवल और जयधवल ग्रंथ ।
धवला में दृष्टिवाद का स्वरूप इस प्रकार बतलाया है -
तस्य दृष्टिवादस्य स्वरूपं निरूप्यते । कौत्कल-काणेबिद्धि-कौशिक-हरिश्मश्रुमांद्धपिक-रोमश-हारीत-मुण्ड-अश्वलायनादीनां क्रियावाददृष्टीनामशीतिशतम्, मरीचिकपिलोल्क-गार्ग्य-व्याघ्रभूति-वाद्वलि-माठर- मौद्गलायनादीनामक्रियावाददृष्टीनां चतुरशीतिः, शाकल्प-वल्कल-कुथुमि-सात्यमुनि-नारायण-कण्व-माध्यंदिन-मोद-पैप्पलाद-बादरायणस्वेष्टकृवैतिकायन-वसु-जैमिन्यादीनामज्ञानिकदृष्टीनां सप्तपष्टिः, वशिष्ठ-पराशर-जतु-कर्णवाल्मीकि-रोमहर्षणी-सत्यदत्त-व्यासैलापुत्रौपमन्यवैन्द्रदत्तायस्थूणादीनां वैनथिकदृष्टीनां द्वात्रिंशत् । एपां दृष्टिशतानां त्रयाणां त्रिषष्टयुत्तराणां प्ररूपणं निग्रहश्व दृष्टिवादे क्रियते ।
(सं.प., पृ.१०७) इसका अभिप्राय यह है कि दृष्टिवाद अंग में १८० क्रियावाद, ८४ अक्रियावाद, ६७ अज्ञानिकवाद और ३२ वैनयिकवाद, इस प्रकार कुल ३६३ दृष्टियों का प्ररूपण और उनका निग्रह अर्थात् खंडन दिया गया है । इन वादों और दृष्टियों के कर्ताओं के जो नाम दिये गये हैं, उनमें से अनेक नाम वैदिक धर्म के भिन्न भिन्न साहित्यांगों से सम्बद्ध पाये जाते हैं । उदाहरणार्थ, हारीत, वशिष्ठ, पाराशर सुप्रसिद्ध स्मृतिकारों के नाम हैं । व्यासकृत स्मृति भी प्रसिद्ध हैं और वे महाभारत के कर्ता कहे जाते हैं । बाल्मीकि कृत रामायण सुविख्यात है, पर धर्मशास्त्र संबंधी उनका बनाया ग्रंथ नहीं पाया जाता । आश्वलायन श्रौतसूत्र भी प्रसिद्ध है।