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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका सत्रों में प्रथम सूत्र आवश्यक के मध्य में णमोकार मंत्र पाया जाता है। अतएव उक्त मान्यता के अनुसार संभवत: यही वह मूलमंत्र है जिसमें वज्रसूरिने उक्त मंत्र को प्रक्षिप्त किया।
__ कल्पसूत्र स्थविरावली में 'वइर' नामके दो आचार्यों का उल्लेख मिलता है जो एक दूसरे के गुरु-शिष्य थे । यथा -
थेरस्सण अज्ज-सीहगिरिस्स जाइस्सरस्स कोसियगुत्तस्स अंतेवासी थेरे अजवइरे गोयमसगुत्ते । थेरस्स णं अजवइरस्स गोयमसगुत्तस्स अंतेवासी थेरे अजवइरसेणे उक्कोसियगुत्ते ।
___ अर्थात् कौशिक गोत्रीय स्थविर आर्य सिंहगिरि के शिष्य स्थविर आर्य बइर गोतम गोत्रीय हुए, तथा स्थविर आर्य वइर गोतम गोत्रीय के शिष्य स्थविर आर्य वइरसेन उक्कोसिय गोत्रीय हुए।
विक्रमसंवत् १६४६ में संगृहीत तपागच्छ पट्टावली में वइरस्वामी का कुछ विशेष परिचय पाया जाता है । यथा -
तेरसमो वयरसामि गुरू।
व्याख्या - तेरसमो त्ति श्रीसीहगिरिपट्टे त्रयोदशः श्रीवज्रस्वामी यो बाल्यादपि जातिस्मृतिभाग, नभोगमनविद्यया संघरक्षाकृत्, दक्षिणस्यां बौद्धराज्ये जिनेन्द्रपूजानिमित्तं पुष्पाद्यानयनेन प्रवचनप्रभावनाकृत्, देवाभिवंदितो दशपूर्वविदामपश्चिमो वज्रशाखोत्पत्तिमूलम्। तथा स भगवान् षण्णवत्यधिकचतुःशत ४९६ वर्षान्ते जात: सन् अष्टौ ८ वर्षाणि गृहे, चतुश्चत्वारिंशत् ४४ वर्षाणि व्रते, पत्रिंशत् ३६ वर्षाणि युगप्र. सर्वायुरष्टाशीति ८८ वर्षाणि परिपाल्य श्रीवीरात् चतुरशीत्यधिकपंचशत ५८४ वर्षान्ते स्वर्गभाक। श्री वज्रस्वामिनो दशपूर्व-चतुर्थ-संहननसंस्थानानां व्युच्छेदः ।
चतुष्कुल समुत्पत्तिपितामहमंह विभुम् । दशपूर्वविधिं वन्दे वज्रस्वामिमुनीश्चरम् ॥
इस उल्लेखपर से वइरस्वामी के संबंध में हमें जो बातें ज्ञात होती हैं वे ये हैं कि उनका जन्म वीर निर्वाण से ४९६ वर्ष पश्चात् हुआ था और स्वर्गवास ५८४ वर्ष पश्चात् । उन्होंने दक्षिण दिशा में भी बिहार किया था तथा वे दशपूर्वियों में अपश्चिम थे। वीरवंशावली में भी उनके उत्तर दिशा से दक्षिणा पथ को बिहार करने का उलेख किया गया है, और यह
१ पट्टावली समुच्चय, पृ.३ २. पट्टावली समुच्चय, पृ. ४७ ३. जैन साहित्य संशोधक १, २, परिशिष्ट, पृ. १४.