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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१२२ शुभचंद्र सिद्धान्तदेव के शिष्य बूचण की निषद्या' ऐसा कहा गया है । इस लेख में जो बूचणकी ज्येष्ठ भगिनी देमतिका उल्लेख आया है, उसका सविस्तर वर्णन लेख नं.४९ (१२९) में पाया जाता है जो उनके संन्यासमरण की प्रशस्ति है । यहां उनके नाम-देमति, देमवती, देवमती तथा दोबार देमियक दिये गये हैं और उन्हें मूलसंघ देशीगण पुस्तक गच्छ के शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव की शिष्य तथा श्रेष्ठिराज चामुण्ड की पत्नि कहा है । उनकी धर्मबुद्धि की प्रशंसा तो लेख में खूब की गई है । उन्हें शासन देवता का आकार कहा है, तथा उनके आहार, अभय, औषध और शास्त्रदान की स्तुति की गई है । उस लेख के कुछ पद्य इस प्रकार हैं :
आहारं त्रिजगज्जनाय विभयं भीताय दिव्यौषधं, व्याधिष्पापदुपेतदीनमुखिने श्रोत्रि च शास्त्रागमम् । एवं देवमतिस्सदैव ददती प्रप्रक्षये स्वायुषा - महद्देवमतिं विधाय विधिना दिव्यौ वधूः प्रोदभूत् ॥ ४॥
आसीत्परक्षोभकरप्रतापाशेषावनीपालकृतादरस्य । चामुण्डनाम्नो वणिज: प्रिया स्त्री मुख्या सती या भुति देमतीति ॥५॥
भूलोकचैत्यालय चैत्यपूजाव्यापारकृत्यादरतोऽवतीर्णा । स्वर्गात्सुरस्त्रीति विलोक्यमाना पुण्येन लावण्यगुणेन यात्र ॥६॥
आहारशास्त्राभयभेषजानां दायिन्यलं वर्णचतुष्टयाय । पश्चात्समाधिक्रियया मृदन्ते स्वस्थानवत्स्वः प्रविवेश योच्चैः ॥७॥
सद्धर्मशत्रु कलिकालराजं जित्वा व्यवस्थापितधर्मवृत्या । तस्या जयस्तम्भनिभंशिलाया स्तम्भं व्यवस्थापयति स्म लक्ष्मी: ॥ ८॥