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अखंडागम की शास्त्रीय भूमिका सुविख्यात, विचक्षण और प्रभावशाली गुरुपरम्परा का अच्छा ज्ञान हो जाता है । तथा, जो और भी विशेष बात ज्ञात होतीहै, वह यह कि, हमारे पद्यनन्दि के एक और शिष्य तथा कुलभूषण सिद्धान्तमुनि के सधर्म जो प्रभाचन्द्र 'शब्दाम्भोरुहभास्कर' और प्रथिततर्कग्रन्थकार' पदों से विभूषित किये गए हैं;वे संभवत: अन्य नहीं, हमारे सुप्रसिद्ध तर्कग्रन्थ प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रके कर्ता प्रभाचन्द्राचार्य ही हों। यह गुरु परम्परा इस प्रकार पाई जाती है :
गौतमादि (उनकी सन्तान में)
भद्रबाहु
चन्द्रगुप्त (उनके अन्वय में) पद्यनन्दि कुन्दकुन्द
(उनकेअन्वयमें) सत्प्ररूपणा के अन्त की प्रशस्ति उमास्वाति गृद्धपिच्छ
बलाकपिच्छ (उनकी परम्परा में)
समन्तभद्र .
(उनके पश्चात्) देवनन्दि, जितेन्द्रबुद्धि पूज्यपाद (उनके पश्चात्)
अकलंक (उनके पश्चात् मूलसंघ, नन्दिगण के देशीगण में)
गोल्लाचार्य