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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका षट्खंडागम का द्वादशांग से सम्बंध
दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यतानुसार षट्खंडागम और कषायप्राभृत ही ऐसे ग्रंथ हैं जिनका सीधा सम्बंध महावीर स्वामी की द्वादशांग वाणी से माना जाता है । शेष सब श्रुतज्ञान इससे पूर्व ही क्रमश: लुप्त व छिन्न भिन्न हो गया । द्वादशांग श्रुत का प्रस्तुत ग्रंथ में विस्तार से परिचय कराया गया है (पृ.९९ से)। इनमें से बारहवें अंग को छोड़कर शेष सब ही नामों की अंग-ग्रंथ श्वेताम्बर सम्प्रदाय में अब भी पाये जाते हैं। इन ग्रंथों की परम्परा क्या है और उनका विषय विस्तारादि दिगम्बर मान्यता के कहां तक अनुकूल प्रतिकूल है इसका विवेचन आगे के किसी खंड में किया जायेगा, जहां केवल यह बात ध्यान देने योग्य है कि जो ग्यारह अंग श्वेताम्बर साहित्य में हैं वे दिगम्बर साहित्य में नहीं हैं और जिस बारहवें अंग का श्वेताम्बर साहित्य में सर्वथा अभाव है वही दृष्टिवाद नामक बारहवां अंग प्रस्तुत सिद्धान्त ग्रन्थों का उद्गमस्थान है ।
बारहवें दृष्टिवाद के अन्तर्गत परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका ये पांच प्रभेद हैं। इनमें से पूर्वगत के चौदह भेदों में के द्वितीय आग्रयणीय पूर्व से ही जीवट्ठाण का बहुभाग और शेष पांच खंड संपूर्ण निकले हैं जिनका क्रमभेद अगले पृष्ठों पर दिये वंशवृक्षों से स्पष्ट हो जायेगा।