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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१०३ की सुविधा के लिये व इसकी भाषा के महत्वपूर्ण प्रश्न की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित करने के हेतु उसकी भाषा का कुछ स्वरूप बतलाना यहां अनुचित न होगा।
१. प्रस्तुत ग्रंथ में त बहुधा द में परिवर्तित पाया जाता है, जैसे, सूत्रों में - गदिगति; चदु-चतुः; वीदराग-वीतराग; मदि-मति, आदि । गाथाओं में - पव्वद-पर्वत; अदीदअतीत; तदिय-तृतीय, आदि । टीका में - अवदारो - अवतारः; एदे-एते; पदिद-पतित; चिंतिदं-चिंतितम्; संठिदं-संस्थितम् ; गोदम-गौतम, आदि।
किन्तु अनेक स्थानों पर त का लोप भी पाया जाता है, यथा- सूत्रों में - गइ-गति; चउ-चतुः; वीयराय-वीतराग; जोइसिय-ज्योतिष्क; आदि । गाथाओं में - हेऊ-हेतुः; पयईप्रकृतिः, आदि । टीका में - सम्मइ-सम्मति; चउव्विह-चतुर्विध; सब्घाइ-सर्वघाति; आदि।
क्रिया के रूपों में भी अधिकत: ति या ते के स्थान पर दि या दे पाये जाते हैं। जैसे, (सूत्रों में अस्थि के सिवाय दूसरी कोई क्रिया नहीं है ) । गाथाओं में - णयदि-नयति; छिन्जदे-छिद्यते; जाणदि-जानाति: लिंपदि-लिम्पति; रोचेदि-रोचते; सहहदि-श्रद्दधाति: कुणदि-करोति; आदि । टीका में - कीरदे, कीरदि-क्रियते; खिवदि-क्षिपति; उच्चदि-उच्यते; जाणदि-जानाति; परूवेदि-प्ररूपयति; वददि-वदति; विरुज्झदे-विरुध्यते; आदि।
किन्तु त का लोप होकर संयोगी स्वरमात्र शेष रहने के भी उदाहरण बहुत मिलते हैं यथा- गाथाओं में - होइ, हवइ-भवति; कहेइ-कथयति; वक्खाणइ-व्याख्याति; भमइ भ्रमति; भण्णइ-भण्यते, आदि । टीका में - कुणइ-करोति; बण्णेइ-वर्णयति; आदि ।
२. क्रियाओं के पूर्वकालिक रूपों के उदाहरण इस प्रकार मिलते हैं - इय- छड्डियत्यक्त्वा । त्तु-कड-कृत्वा । अ- अहिगम्म-अधिगम्य । दूण- अस्सिदूण-आश्रित्य । ऊणअस्सिऊण, दळूण, मोत्तूण, दाऊण, चिंतिऊण, आदि ।
३. मध्यवर्ती क के स्थान में ग आदेश के उदाहरण मिलते हैं। यथा- सूत्रों में - वेदग-वेदक । गाथा में - एगदेस-एकदेश, टीका में - एगत्त-एकत्व; बंधग -बन्धक, अप्पाबहुग-अल्पबहुत्व; आगास-आकाश; जाणुग-ज्ञायक; आदि ।
किन्तु बहुधा मध्यवर्ती क का लोप पाया जाता है । यथा, सूत्रों में -- सांपराइयसाम्परायिक; एइंदिय-एकेन्द्रिय; सामाइय.सामायिक; काइय-कायिक । गाथाओं में -- तित्थयर-तीर्थकर: वायरणी-व्याकरणी; पयई-प्रकृति; पंचएण-पंचकेन; समाइण्ण-समाकीर्ण; अहियार-अधिकार । टीका में -- एण-एक; परियम्म-परिकर्म; किदियम्म-कृतिकर्म, वायरणव्याकरण; भडारएण-भट्टारकेण, आदि ।